Book Title: Vruhad Hast Rekha Shastra
Author(s): Rajesh Anand
Publisher: Gold Books Delhi

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Page 259
________________ पर जाती है। यह भी राहू रेखा कहलाती है (चित्र-186)। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन होते हैं। चरित्र सम्बन्धी गिरावट के विषय में इनका कोई स्तर नहीं होता है। मां, बहन, बेटी या अन्य पवित्र सम्बन्धों पर भी इनकी बुरी दृष्टि रहती है। ये शराबी, जुआरी होते हैं। हाथ पतला, काला मस्तिष्क व हृदय रेखा दोष-पूर्ण होने पर तो सभी कलाओं में पारंगत होते हैं। मत्स्य रेखा मत्स्य रेखा, सूर्य की उंगली के नीचे बने मछली के आकार को कहते हैं। कभी-कभी यह चतुष्कोण या बढ़े हुए त्रिकोण जैसी भी होती है (चित्र-187 व 188)। पूर्ण व निर्दोष होने पर यह स्पष्टतया पहचानी जाती है। जीवन रेखा के आरम्भ में इस प्रकार के चिन्ह को भी कई लोग मत्स्य रेखा कहते हैं। परन्तु हमारे विचार से यह मत्स्य रेखा न होकर द्वीप होता है, क्योंकि अनुभव के आधार पर इसके फल जीवन रेखा में द्वीप जैसे ही होते हैं। ___ मत्स्य रेखा की उपस्थिति व्यक्ति के धार्मिक अनुशासित, प्रख्यात, सहृदय व दानी होने का लक्षण हैं। ऐसे व्यक्ति धनी होने पर स्कूल, अस्पताल, धर्मशाला या इस प्रकार के कार्यों के लिए मोटा दान करते हैं। हाथ की उत्तमता व आर्थिक स्थिति के अनुसार ही इसका फल कहना चाहिए। हाथ में भाग्य रेखाओं की संख्या अधिक, जीवन रेखा गोलाकार या अन्य उत्तम लक्षण होने पर व्यक्ति लाखों रुपया दान करते देखे जाते हैं। ये सम्पत्ति निर्माण भी करते हैं। जो भी इनके पास जाता है, उसकी सहायता अवश्य करते हैं, अत: यह लक्षण परोपकारी होने का है। ___ उंगलियां छोटी, हृदय व मस्तिष्क रेखा समीप होने पर उदार होते हुए भी उचित या अनुचित का विचार करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के द्वारा, पात्र को देखकर या सही स्थान पर ही दान दिया जाता है। पहले परिवार 13-1 को सहायता देकर ही समाज के लिए दान करते हैं। चित्र-187 हाथ लम्बा उंगलियां लम्बी, हृदय व मस्तिष्क रेखा दूर होने पर पात्र-अपात्रादि का कोई विचार न करके उदारता से सहायता करते हैं। ऐसे ही व्यक्ति 'महादानी कहलाते हैं, कभी-कभी तो सर्वस्व ही दान कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति धार्मिक, भक्त व सच्चरित्र होते हैं। शुक्र अधिक उन्नत न होने पर विष्णु या राम के उपासक पाये जाते हैं और चन्द्रमा व शुक्र उन्नत होने पर कृष्ण 258 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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