Book Title: Vruhad Hast Rekha Shastra
Author(s): Rajesh Anand
Publisher: Gold Books Delhi

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Page 264
________________ शुक्र रेखा अगूठे के मूल में शुक्र के ऊपर अनेक छोटी-मोटी रेखाएं होती हैं, वैसे तो ये सभी शुक्र रेखाएं होती हैं परन्तु इनमें कुछ मोटी और कुछ पतली व टूटी-फूटी होती हैं। इन पतली व टूटी-फूटी रेखाओं से हमारा कोई तात्पर्य नहीं । अंगूठे के मूल में जितनी लम्बी व स्पष्ट रेखाएं होती हैं, शक्र रेखाओं के नाम से कारी जाती हैं (चित्र-193, 194 व 195)। ये रेखाएं स्थान परिवर्तन, नौकरी, कार में परिवर्तन साझीदारों की संख्या व जीवन के लिए किए जाने वाले व्यवसायों के संख्या का निर्देश करती हैं। जितनी ही साफ होकर ऐसी रेखाएं जीवन रेखा के पास पहुंचता , उस संख्या में नौकरी, काम या साझियों की संख्या का निर्देश करती हैं। शुक्र रेखा निर्दोष होने पर व्यक्ति नौकरी अवश्य करते हैं। भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलने की दशा में हाथ व्यापारिक, भाग्य रेखा मोटी तथा जीवन रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर व शुक्र रेखाएं हों तो नौकरी नहीं करने पर भी वेतन लेते हैं, चाहे अपने ही कार्य से निश्चित धन लेते हों या किसी कम्पनी के डायरेक्टर के नाते। रेखाएं अच्छी हों तो गोद या वसीयत से धन प्राप्त होता है। शुक्र रेखाएं एक से अधिक होकर अलग-अलग त्रिकोणों से निकली हों तो भी स्वयं या किसी सन्तान को गोद का योग होता है। ___ दोषपूर्ण शुक्र रेखाएं त्रिकोणों से निकलकर जीवन । रेखा के पास आती हों और मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो गोद का योग तो कराती हैं परन्तु ऐसे व्यक्ति जहां गोद लिये जाते हैं वहां किसी के स्वभाव के कारण परेशानी होती है। दोषपूर्ण शुक्र रेखाएं नौकरी व साझे के कार्य में भी अशान्ति का लक्षण है। ___ शुक्र रेखा निर्दोष होने पर सूर्य व शनि की उंगलियां बराबर लम्बी हों तो गोद का लाभ न मिलकर अचानक सट्टे या लाटरी से धन प्राप्त होता है। मस्तिष्क व हृदय चित्र-193 रेखा सम्मिलित हो तो भी धन लाभ होता है। शुक्र रेखा दोषपूर्ण न होकर निर्दोष व लम्बी हो तो साझेदारी में लम्बे समय तक कार्य चलता है। इसमें दोष होने पर साझेदारी में खटपट हो जाती है और बीच में 263 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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