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है या भाग्य रेखा ही शाखान्वित होकर बृहस्पति पर पहुंचती है।
__ जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलकर यदि बृहस्पति पर हो तो इच्छा रेखा कहलाती है, परन्तु ऐसी दो रेखाएं एक साथ होने पर भाग्य रेखाएं मानी जाती हैं। ऐसी दो रेखाएं होने पर व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं और 22/23 वर्ष की आयु में धनी हो जाते हैं।
मुख्य भाग्य रेखा बृहस्पति पर जाने की दशा में यह स्वाभाविक रूप से ही जीवन रेखा के पास आ जाती हैं अत: अशान्ति का कारण होती हैं। पारिवारिक क्लेश, मानसिक अशान्ति, झगड़े आदि इसके फल होते हैं। ऐसे व्यक्ति उत्तरदायित्व महसूस नहीं करते और सामीप्य की आयु तक घमंडी व असफल होते हैं। फलतः 35 वर्ष की आयु के पश्चात उन्नति करते हैं। ये स्वयं को बृहस्पति समझते हैं या बोलने की आदत कम होती है। यदि बृहस्पति अच्छा हो तो नौकरी ही करते हैं। नौकरी सम्मान-जनक होती है। इसमें इनके स्वतन्त्र अधिकार होते हैं एवं स्वामी की तरह से ही रहते हैं।
यदि भाग्य रेखा द्विभाजित होकर एक शाखा बृहस्पति पर जाए तो ऐसे व्यक्ति सफल, सम्मानित व उच्च पदस्थ होते हैं, परन्तु इसकी एक शाखा शनि पर जाना आवश्यक है।
= भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर
यह पहले भी दर्शाया जा चुका है कि भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा से दूर होती है उत्तम मानी जाती है परन्तु साथ ही यह भी देखने की बात है कि यह किसी रेखा पर रुकी नहीं होनी चाहिए (चित्र-114)।।
मोटी भाग्य रेखा होकर सीधी शनि पर जाती हो तो अड़चनें और संघर्ष अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति कमाते तो हैं, परन्तु बचत कम कर पाते हैं। ये लोभी भी अधिक होते हैं। पतली एवं दूर होने पर भाग्य रेखा अत्यन्त उत्तम फलदायी होती हैं। इनका व्यय, आय से सदा कम रहता है।
भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकल कर सूर्य के नीचे मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो जीवन रेखा से दूर तो होती है, परन्तु अच्छा लक्षण नहीं मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते हैं। ये चित्र-114 लापरवाह, दूसरों पर भरोसा करने वाले, अस्थिर मस्तिष्क वाले होते हैं। यदि ऐसी रुकी हुई भाग्य रेखा पतली हो तो इतनी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता, काम चलता रहता है, परन्तु विशेष भाग्योदय 44 वर्ष के पश्चात ही होता है।
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