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में परेशानी रहती है। शरीर व धन का कष्ट भी रहता है। अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर विछोह या तलाक
तक हो जाता है। इस प्रकार के द्विभाजन की
दोनों शाखाएं समान मोटाई की होती हैं।
शाखाएं समान मोटाई
की न होने पर भी फल तो यही होता है,
परन्तु अधिक प्रभाव नहीं होता ।
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अन्त में द्विभाजन
अन्त में द्विभाजन दो प्रकार का होता है। एक तो जिस स्थान पर हृदय रेखा समाप्त होती है, वहीं पतली होकर द्वि-जिव्हाकार हो जाती है। ये जिव्हाएं पतली तथा छोटी होती है (चित्र - 154) । यह उत्तम लक्षण है। ऐसा व्यक्ति साधारणतया जीवन भर उन्नति की ओर अग्रसर होता जाता है और निर्मल हृदय व सच्चरित्र होता है। उतार-चढ़ाव तो जीवन में आते हैं परन्तु प्रभु कृपा से सभी बाधाएं पार हो जाती हैं। यह अन्य रेखाओं की तरह हृदय रेखा का गुण है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ मानव व मानसिक रूप से प्रफुल्ल होते हैं।
दूसरे प्रकार के द्विभाजन में शाखाएं लम्बी और मोटी होती हैं। यह द्विभाजन न होकर हृदय रेखा की शाखाएं ही होती हैं। कई बार एक शाखा शनि पर व दूसरी बृहस्पति पर जाती है या मस्तिष्क रेखा पर मिलती है । मस्तिष्क रेखा पर मिलने की दशा में यह दोषपूर्ण
होती है और बृहस्पति पर जाने की दशा में व्यक्ति में अविश्वास की भावना पैदा
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