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चित्र-170
मस्तिष्क रेखा पर या उससे पहले ही समाप्त हो जाती है। दोष पूर्ण होने पर यह उत्तम कोटि की मानसिक शक्ति का द्योतक है। ऐसे व्यक्तियों को आगे आने वाली घटनाओं का स्पष्ट पता लग जाता है। कभी-कभी यह रेखा चन्द्राकार भी होती है (देखें चित्र-170)।
इस रूप में यह और भी अधिक प्रभावशाली होती है। ये रेखाएं दो या तीन होने पर ऐसे व्यक्ति ईश्वर प्राप्ति के लिए अत्यन्त उत्सुक होते हैं। हाथ सुन्दर और निर्दोष व अन्तर्ज्ञान रेखाएं होने पर इन्हें साक्षात्कार के विषय में कोई शंका नहीं रहती। चन्द्रमा उन्नत होने पर ऐसे व्यक्तियों की भाव समाधि या चिन्तन के समय भावावेश या अश्रुपात
होता है। ऐसे व्यक्ति अत्यन्त प्रेमी व भावुक होते हैं। हाथ में भावुकता के अन्य लक्षण जैसे मस्तिष्क रेखा का अन्त चन्द्रमा पर या उसकी ओर, हृदय रेखा में रोमांच और मस्तिष्क रेखा में दोष आदि होने पर ये प्रेम साधना का मार्ग ग्रहण करते हैं। मंगल उन्नत, मस्तिष्क रेखा निर्दोष या उसका अन्त मंगल पर, मस्तिष्क रेखा के आदि और अन्त में द्विभाजन आदि बुद्धिवादी होने के लक्षण होने पर उपरोक्त रेखा
ज्ञान-योग की ओर ले जाती है। ऐसे व्यक्ति को लोग ) . 'गुरु जी' कहकर
चित्र-171 सम्बोधित करते हैं, चाहे उसकी ऐसी स्थिति हो या न हो, बृहस्पति मुद्रिका होने पर तो यह होता ही है। ऐसे व्यक्ति सहृदय, सच्चरित्र व साधक होते हैं। हर स्थिति में अंगूठा लचीला, लम्बा या पतला होना आवश्यक है। अंगूठे के मूल में अंगूठे को घेरती दो निर्दोष रेखाएं हों और चन्द्रमा पर अर्द्ध-वृताकार अन्तर्ज्ञान रेखा हो तो व्यक्ति समाधि में प्रवेश करता है। ऐसे व्यक्ति अदृश्य हो जाते हैं। मृत्यु के पश्चात् इनका शरीर लुप्त हो जाता है। ये समाधि में ही शरीर त्याग करते हैं। जमीन के बीच समाधि लेने
चित्र-172
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