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इस प्रकार की हृदय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा का अन्तर अधिक, हाथ बड़ा, लाल, गुलाबी या छोटा हो तो दानी होते हैं। इनमें अपनी सामर्थ्य या उससे अधिक दूसरे की सहायता करने का गुण होता है। हृदय और मस्तिष्क रेखा निकट होने पर ऐसे व्यक्ति उन्हीं की सहायता करते हैं, जो वास्तव में सहायता के पात्र होते हैं, परन्तु हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर पात्रता का विचार नहीं करते, जो भी याचक बनकर इनके सामने आता है यथाशक्ति प्रभाव या धन से उसकी मदद करते हैं। हाथ में अन्य सुन्दर लक्षण जैसे जीवन रेखा गोल, भाग्य रेखा एक से अधिक आदि हों तो ऐसे व्यक्ति कुएं, धर्मशाला व अनाथालय जैसे सामाजिक और धार्मिक कार्यों में खुले दिल से दान देते हैं। ऐसे हाथ लम्बे, छोटे, समकोण, चमसाकार ही होते हैं और हृदय रेखा में दोष होने पर भी ऐसे व्यक्ति दानी होते हैं, ये साधारण रहन-सहन व उच्च विचारों में विश्वास रखते हैं। अपना कार्य दूसरे की सुविधा व असुविधा देख कर करते हैं, अत: कुशल कार्यकर्ता व आदर्श मानव होते हैं। ऐसे हाथों में संसार छोड़कर सन्यासी बनने की भावना होने पर सर्वस्व दान कर देते हैं।
हृदय रेखा का अंत बृहस्पति की ओर अर्थात हृदय रेखा का बृहस्पति को देखना
इस दशा में हृदय रेखा न तो किसी अन्य स्थान पर जाती है और न ही बृहस्पति पर। यह शनि की उंगली के नीच थोड़ी आगे निकल कर बृहस्पति की परिधि के पहले ही समाप्त हो जाती है और ऐसा लगता है कि जैसे बृहस्पति पर गई हो (चित्र-137)।
ऐसे व्यक्ति शंकालु होते हैं। स्त्रियों के हाथों में । यह लक्षण होने पर ऐसी स्त्रियां पति के विषय में शंकाएं। करती हैं कि इनका पति इन्हें प्यार नहीं करता परन्तु यह शंका ही होती है। पुरुष भी ऐसा ही सोचते हैं। भाग्य रेखा मोटी होने की आयु तक इस प्रकार की शंका विशेषरूप से रहती है। फलस्वरूप गृहस्थ जीवन मधुर नहीं रहता। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक बात में अपना समर्थन चाहते हैं, क्योंकि इन्हें अपने पर पूर्ण विश्वास नहीं होता। स्त्री होने पर, ऐसी स्त्रियां पूछती हैं कि भोजन कैसा बना है ? नमक ठीक है कि नहीं? इसी प्रकार चित्र-137
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