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2. हृदय रेखा का निकास मंगल से
3. हृदय रेखा का निकास बुध से
4. हृदय रेखा का अन्त शनि के नीचे
5. हृदय रेखा का अन्त शनि पर
6. हृदय रेखा का अन्त शनि व बृहस्पति की उंगलियों के बीच 7. हृदय रेखा का अन्त बृहस्पति की उंगली पर
8. हृदय रेखा का बृहस्पति को देखना
9. हृदय रेखा का अन्त सीधा बृहस्पति पर
चित्र - 129
10. हृदय रेखा में द्वीप शनि पर व बृहस्पति पर । (चित्र -129) हृदय रेखा से कतिपय बीमारियों का भी आभास मिलता है। यह किसी व्यक्ति के प्रेम, आर्थिक हानि, शनि की साढ़ेसाती आदि का दर्पण है। अन्य सभी रेखाएं समीप से दोहरी होने पर दोषपूर्ण मानी जाती हैं, परन्तु हृदय रेखा के पास से दोहरी होना अर्थात् इसके साथ सटी हुई कोई दूसरी रेखा होना गुण माना जाता है। यह अवश्य ही देख लेना चाहिए कि वह रेखा टूटी-फूटी न हो । टूटी-फूटी या द्वीपयुक्त होने पर यह भी दोषपूर्ण मानी जाती है। हृदय रेखा के साथ एक ही समानान्तर रेखा समीप में बहुत कम देखी जाती हैं, प्राय: छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। ये टुकड़े भी दोषपूर्ण नहीं माने जाते। ऐसे टुकड़े एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं। एक-दूसरे पर न चढ़ कर यदि ये मुख्य रेखा सहित टूट जाते हों तो दोषपूर्ण होते हैं।
उत्तम हृदय रेखा
हृदय रेखा का सम्बन्ध जैसा कि बताया जा चुका है कि व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों से हैं। अतः किसी व्यक्ति की मानसिक विकृति या दृढ़ता, हृदय रेखा को देखकर जानी जा सकती है। यह जितनी ही निर्दोष होती है, व्यक्ति सहृदय, दूरदूर्शी, शान्त, मृदुभाषी, सद्व्यवहार करने वाला, दूसरों की स्त्री व धन की लालसा न करने वाला होता है। अन्य रेखाओं में दोष न होने पर यदि हृदय रेखा भी उत्तम हो तो वास्तव में ही गुणों को चार चांद लग जाते हैं, इनका मानसिक चिन्तन व कार्य दक्षता उच्च कोटि की होती है। अन्य रेखाओं से प्रभावित होकर इन गुणों में कमी या प्रखरता आती है। उत्तम हृदय रेखा टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, जंजीराकार, काली, लाल, अधिक झुकी हुई नहीं होती । हृदय रेखा वही सर्वोत्तम होती है, जो निर्दोष व उंगलियों से दूर
हो ।
निर्दोष हृदय रेखा के साथ बुध की उंगली टेढ़ी हो तो व्यक्ति स्पष्टवक्ता होता
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