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की कमी का लक्षण है। खून की खराबी जैसे फोड़ा, फुन्सी, दाद आदि का प्रभाव इनको होता है। मंगल से निकली हुई हृदय रेखा दोषपूर्ण भी हो तो उपरोक्त दोष अधिक होते हैं। हृदय रेखा में दोष हो तो आंखों में दोष पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों के वंश में सूरजमुखी सन्तान होने की सम्भावना होती है। सूरजमुखी न होने पर आंखें छोटी, तिरछा देखना या पलकें झपकना आदि होते हैं। स्वयं व सन्तान के चरित्र में भी कोई न कोई दोष होता है। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान कुसंगति में पड़कर घर छोड़ कर भागती है। इनका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है व घबराहट अधिक होती है (चित्र-132)। मंगल से निकली हुई हृदय रेखा मोटी व शाखा रहित हो तो व्यक्ति दया-हीन होते हैं, ये मांस, मदिरा जैसे
चित्र-132 अभक्ष्य आहार करते हैं। मंगल से निकली हृदय रेखा उंगलियों के आधार से बहुत नीचे हो तो व्यक्ति उपरोक्त दुर्गुण होते हुए भी किसी न किसी विषय में पारंगत होते हैं।
=== हृदय रेखा का बुध से निकलना
मगल से निकलने की अपेक्षा बुध से निकली हुई हृदय रेखा कितनी भी दोषपूर्ण क्यों न हो, अच्छी ही होती है। ऐसे व्यक्ति शान्त स्वभाव के होते हैं। इन्हें परिवार का सुख होता है। इनकी सन्तान चरित्रवान ही होती है, थोड़ी-बहुत कमी चाहे उनमें हो। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वयं तथा सन्तान में वासनात्मक प्रवृत्ति अधिक होती है। अत: ठीक संगति न मिलने पर थोड़ा-बहुत चरित्र विकार पाया जाता है।
बुध से निकली हुई हृदय रेखा आरम्भ में मोटी हो तो हकलाहट या तुतलाहट जैसा थोड़ा बहुत दोष होता है। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। अन्य लक्षण देखकर शेष अनुमान लगाना चाहिए।
हृदय रेखा का अन्त शनि के नीचे।
इस प्रकार हृदय रेखा शनि की उंगली के नीचे जाकर एकदम समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति उदासीन होते हैं। दूसरे की, अर्थात् स्त्री हो तो पुरुषों की और पुरुष. हो तो स्त्रियों की आलोचना करते हैं। (देखें चित्र-133)।
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