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उसको गर्भाशय सम्बन्धी रोग पाये जाते हैं, गर्भाशय या पित्ताशय का ऑपरेशन होता है या कभी-कभी नाभि या हार्निया भी होता है। शरीर ढीला तथा प्रदर का प्रकोप होता है।
जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप होना =
जीवन रेखा में बृहस्पति के नीचे द्वीप हो और उससे कोई रेखा निकल कर बृहस्पति या शनि पर जाती हो तो गले में खुश्की या छाले, टॉन्सिल तथा बचपन में डिप्थीरिया आदि रोग होते हैं। द्वीप के साथ-साथ यदि जीवन रेखा भी दोष-पूर्ण हो तो किसी बच्चे या स्वयं को तुतलाने या हकलाने की शिकायत पाई जाती है। जिस अवस्था में यह द्वीप होता है, उस अवस्था में सन्तान का सुख नहीं होता तथा इनके वंश में कोई संतानहीन रहता है। यह लक्षण ऐसे व्यक्तियों में पाया जाता हैं, जिन्हें पित-दोष होता है। वंश के न चलने या सन्तान न होने में किसी प्रकार का दोष होना पितृ-दोष के ही कारण होता है।
जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा दोनों के आरम्भ में द्वीप हो गया हो और दोनों का जोड़ लम्बा या दोनों जुड़ कर मोटी हो गई हों तो कान का आपरेशन या कान में किसी प्रकार का दोष होता है। वृद्धावस्था में ऐसे व्यक्ति के कान बिल्कुल खराब हो जाते हैं। . दोनों हाथों में यदि आरम्भ में बड़ा द्वीप हो तो वंश चलाने में परेशानी आती हैं। गर्भपात होता है या लड़कियां ही पैदा होती हैं।
. जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप का आकार पानी की बूंद जैसा हो तो यह परजात योग होता है। ऐसे व्यक्ति को आयु भर कुछ न कुछ परेशानी लगी रहती है।
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= सूर्य के नीचे जीवन रेखा में द्वीप
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यह द्वीप आंखों में कमजोरी पैदा करता है। द्वीप के स्थान पर यदि काला धब्बा हो तो बड़ी आयु में काला मोतिया उतरने से अन्धा होने की नौबत आ जाती है। मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो ऑपरेशन होने पर भी आंख ठीक नहीं हो पाती।
जीवन रेखा के अन्त में बड़ा द्वीप हो तो व्यक्ति को मां-बाप में से एक का ही सुख प्राप्त होता है।
इस द्वीप को यदि बाहर से कोई रेखा आकर छूती
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चित्र-50
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