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अपनी धुन के पक्के होते हैं। व्यापारी एवं बुद्धिजीवी व्यक्ति के हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं। ये दिन प्रतिदिन उन्नति करने वाले होते हैं। इनके विपरीत मस्तिष्क रेखा यदि एकदम मुड़कर चन्द्रमा पर जाए ( चित्र - 70 ) तो विशेष कल्पना करने वाले व विचार के स्थिर नहीं होते। कभी कुछ सोचते हैं तो कभी कुछ। वहमी भी होते हैं। हाथ में ज्यादा रेखाएं एवं शुक्र प्रधान हाथ होने पर वहम और कल्पना दोनों अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत देर में सफल होते हैं। ये स्वभाव के पहले तेज होते हैं और बाद में शान्त हो जाते हैं। द्वीप युक्त होने पर मस्तिष्क रेखा अन्त में व्यक्ति को चिड़चिड़ा या कम बोलने वाला बना देती है।
मस्तिष्क रेखा एक हाथ में चन्द्रमा पर तथा दूसरे हाथ बुध की ओर गई हो तो संसार त्याग की भावना रहती है। स्वभाव से ही त्यागी होते हैं। हृदय रेखा दोष-हीन, भाग्य रेखा पतली, उंगलियां लम्बी हों तो निश्चय ही ऐसा होता है। शुक्र ग्रह उन्नत या भाग्य रेखा मोटी होने पर ये वहमी व आलसी होते हैं। बृहस्पति की उंगलियां यदि छोटी हों तो भी त्यागी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी आदत से मजबूर होकर त्याग करते हैं, परन्तु यश इन्हें नहीं मिलता । त्याग के विषय में सोचते हुए यह देखना आवश्यक है कि व्यक्ति की अवस्था भी त्याग करने की है ? यदि त्याग करने की शक्ति ही नहीं हो तो त्याग की भावना का कोई महत्व नहीं होता । (चित्र - 71) धनी
चित्र - 71
न होने पर यथा शक्ति ही त्याग करते हैं। धनी होने पर धर्मशाला, शिक्षालय, औषधालय आदि बनवाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के हाथ में सूर्य की उंगली के नीचे मत्स्य रेखा पाई जाती है।
मस्तिष्क रेखा का अन्त (चन्द्रमा पर एकदम मुड़कर )
कभी-कभी मस्तिष्क रेखा एकदम मोड़ खा कर नीचे की ओर झुक जाती है। हम इसे झुकी मस्तिष्क रेखा कहेंगे। झुकने के बाद मस्तिष्क रेखा का झुकाव या तो चन्द्रमा की ओर होता है या लम्बी होने पर यह चन्द्रमा पर पहुंच जाती है, (चित्र - 72 ) ।
ऐसे व्यक्ति बहुत भावुक होते हैं। छोटी-छोटी बात महसूस करना, जरा सी बात को बड़ा बना देना इनकी आदत होती है। यदि मस्तिष्क रेखा में कोई अन्य दोष जैसे
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