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वर्णीजी : जीवन-रेखा
कौन जानता था--
'समय एव करोति बलाबलम्' का साक्षात निदर्शन, आल्हा ऊदलके कारण श्राबाल गोपालमें सुरव्यात, तथा पुण्यश्लोका, भारतीय जोन अोफ आर्क, स्वतंत्र भारत माताका अवतार महारानी लक्ष्मीबाईके नेतृत्वमें लड़ने वाले अन्तिम विद्रोहियोंकी पुण्य तथा पितृभूमि बुन्देलखंडपर भी जब सारे भारतके दास हो जाने पर अन्तमें दासता लाद ही दी गयी, तो कूटनीतिज्ञ गोरे विजेता उसे सब प्रकारसे साधन विहीन करके ही संतुष्ठ न हुए अपितु उन्होंने अनेक भागोंमें विभाजित करके पवित्र बुन्देलखड नाम तक को लुप्त कर दिया। स्वतंत्रताके पुजारियोंका तीर्थस्थान झांसी सर्वथा उपेक्षित होकर ब्रिटिश नौकरशाहीका पिछड़ा हुआ जिला बना दिया गया । पर इससे बुन्देलखण्डका तेज तथा स्वतंत्रता-प्रेम नष्ट न हआ और वह अलख आज भी जलती है। इसी जिलेके मडावरा परगने में एक हंसेरा नामका ग्राम है। इस ग्राममें एक मध्यवित्त असाठी वैश्य परिवार रहता था। इस घरके गृहपतिके ५० वर्षको अवस्थामें प्रथम सन्तान हुई जिसका नाम श्री हीरालाल रक्खा गया था। इनकी यद्यपि पर्याप्त शिक्षा नहीं हुई थी तथापि वे बड़े सूक्ष्म विचारक तथा स्वाभिमानी व्यक्ति थे । परिस्थितियोंके थपेड़ोंने जब इनकी आर्थिक स्थितिको बिगाड़ना शुरू किया तब भी ये शान्त रहे । इन्हीं परिस्थितियों में वि० सम्वत् १९३१में इनके घर एक पुत्रने जन्म लिया जिसका नाम गणेशप्रसाद (आज पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी ) रक्खा गया। ज्योतिषियोंने यद्यपि चालकको भाग्यवान बताया था किन्तु उसके जन्मके बाद छह वर्ष तक घरकी आर्थिक स्थिति हीयमान ही रही । फलतः कर्नल ह्यूरोज द्वारा मडावरा-विजयके २२ वर्ष बाद ( १८८० ई० ) यह परिवार भी श्रा कर मड़वारामें बस गया।
यद्यपि प्रतिशोध लेनेमें प्रवीण गोरोंने भारतीय शासकोंके सरदारों तथा अनुरक्त नागरिकोंका कसके दमन किया था तथापि शाहगढ़ राजकी राजधानी मड़ावरा उस समय भी पर्याप्त धनी थी। नगरवासी सैकड़ों सम्मान्य श्रीमानोंके धर्म प्रेमको दो वैष्णव तथा ग्यारह जैनमन्दिर शिर उठा कर कहते थे । फलतः इस ग्राममें आते ही श्री हीरालालजी सम्मान पूर्वक जीवन ही न विताने लगे अपितु बालक गणेशको भी यहां के प्राईमरी तथा मिडिल स्कूलोंकी शिक्षाका सहज लाभ हो गया । इतना ही नहीं जैन-पुरामें रहने के कारण चिन्तन शील बालक गणेशके मन में एक अस्पष्ट जिज्ञासा भी जड़ जमाने लगी। उसकी लौकिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाएं साथ साथ चल रही थी । एक ओर वह अपने गुरूजीके साथ
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