________________ 156 वर्ण, जाति और धर्म ब्राह्मणका क्षत्रिय कन्यासे विवाह करने पर उत्पन्न हुई सन्तानकी मूर्धावसिक्त संज्ञा होती है, क्षत्रियका वैश्य कन्यासे विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी माहिष्य संज्ञा होती है, वैश्यका शूद्रकन्याके साथ विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी करण संज्ञा होती है, ब्राह्मणका वैश्यकन्याके साथ विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी अम्बष्ठ संज्ञा होती है, ब्राह्मणका शूद्र कन्याके साथ विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी निषाद संज्ञा होती हैं। क्षत्रियका शूद्र कन्यासे विवाह करने पर उससे . उत्पन्न हुई सन्तानकी उग्र संज्ञा होती है, क्षत्रियका ब्राह्मण कन्या के साथ विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी सूत संज्ञा होती है, वैश्यका क्षत्रिय कन्यासे विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी मागध संज्ञा होती है, वैश्यका ब्राह्मण कन्याके साथ विवाह करने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी वैदेह संज्ञा होती है, शूद्रका वैश्य कन्याके साथ सम्बन्ध होने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी आयोगव संज्ञा होती है, शूद्रका क्षत्रिय कन्याके साथ संयोग होने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तानकी क्षत्त संज्ञा होती है और शूद्रका ब्राह्मण कन्याके साथ संयोग होने पर उससे उत्पन्न हुई सन्तान की चाण्डाल संज्ञा होती है। तथा ये या इसी प्रकारके अन्य सम्बन्धोंसे उत्पन्न हुई सन्तानें वर्णसंकर होती है। वर्णसंकरका लक्षण करते हुए वहाँ कहा है कि जो सन्तान व्यभिचारसे उत्पन्न होती है, जो अपने वर्णकी कन्याको छोड़कर अन्य वर्णकी कन्याके साथ विवाह करनेसे उत्पन्न होती है और जो अपने वर्णके कर्मको छोड़कर अन्य वर्णका कर्म करने लगते हैं उन सबको वर्णसंकर कहते हैं / अतएव मनुस्मृतिमें सवर्ण विवाहको ही प्रशस्त माना गया हैं / वहाँ काम विवाहको स्थान तो दिया है, परन्तु 1. अ० 10 श्लो 3 / 2. अ० 10 श्लो० 8 / 3. म० श्लोक है। 4. अ० 10 श्लो० 11 / 5. अ० 10 श्लो०१२ / 6. भ० 10 अथसे इति तक दृष्टव्य / 7. अ० १०श्लो० 24 / 8. अ०३ श्लो० 12 /