________________ - नोआगमभाव मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 303 मणुसगदीए मणुसो णाम कधं भवदि // 8 // मणुसगदिणामाए उदएण // 0 // --क्षुल्लकबन्ध स्वामित्व मनुष्यगतिमें मनुष्य कैसे अर्थात् किस कर्मके उदयसे होता है // 8 // मनुष्यगति नामकर्मके उदयसे होता है // 6 // 3. x x x मणुस्सगदीए मणुसा मणुसपजत्ता मणुसिणीओ णियमा अस्थि // 3 // मणुसअपजत्ता सिया अस्थि सियां णस्थि // 4 // मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनी नियमसे हैं // 3 // मनुष्य अपर्याप्त स्यात् हैं और स्यात् नहीं हैं // 4 // -क्षुल्लकबन्ध नानाजीवोंकी अपेक्षा भंगविचय संजमाणुवादेण संजदा परिहारसुद्धिसंजदा संजदासंजदा केवचिरं कालादो होति // 147 // जहणेण अंतोमुहुत्तं // 148 // उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा // 14 // संयम मर्गणाके अनुवादसे संयत, परिहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंका (एक जीवकी अपेक्षा ) कितना काल है // 147 // जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। // 148 // और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है // 146 // . -क्षुल्लकबन्ध काल मनुष्यगतौ मनुष्याणां पर्याप्तापर्याप्तकानां हायिक क्षायोपशमिकं . चास्ति / औपशमिकं पर्याप्तकानामेक नापर्याप्तकानाम् / मानुषीणां त्रितयमप्यस्ति पर्याप्तिकानामेव नापर्याप्तिकानाम् / अ० 1 सू०८ पृ. 23 -- गत्यानुवादेन".""मनुष्यगतौ चतुर्दशापि सन्ति / अ० 1, सू०८, पृ० 31 - मनुष्यगतिमें पर्याप्त और अपर्याप्त (निवृत्त्यपर्याप्त) मनुष्योंके क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं / औपशमिक सम्यग्दर्शन पर्याप्त मनुष्योंके ही होता है, अपर्याप्त मनुष्योंके नहीं होता / मनुष्यिनियोंके तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं। किन्तु ये पर्याप्त मनुष्यिनियोंके ही होते हैं, अपर्याप्त मनुष्यिनियोंके नहीं होते।