________________ जातिमीमांसा न च जात्यन्तरम्थेन पुरुषेण स्त्रियां क्वचित् / क्रियते गर्भसम्भूतिर्विप्रादीनां तु जायते // 11-166 // अश्वायां रासभे नास्ति सम्भवोऽस्येति चेन्न सः / नितान्तमन्यजातिस्थशफादितनुसाम्यतः // 11-167 // यदि व तद्वदेव स्याद् द्वयोर्विसदृशः सुतः / नात्र दृष्ट तथा तस्माद्गुणैवर्णव्यवस्थितिः // 11-168 // जातिभेद वहींपर देखा जाता है जहाँपर यह सम्भव है। जैसे मनुष्य हाथी, वालेय, गौ और घोड़ा आदि ये सब अलग अलग जातियाँ हैं // 11-165 / / अन्य जातिका पुरुष अन्य जातिकी स्त्रीमें गर्भाधान नहीं कर सकता, परन्तु ब्राह्मण आदिमें यह क्रिया देखी जाती है // 11-166 // यदि कोई कहे कि घोड़ी अन्य जातिकी होती है और गधा अन्य जातिका होता है, फिर भी गधा घोड़ीमें गर्भाधान करता है सो यह कहना उचित नहीं है, क्योंकि ये सर्वथा भिन्न जातिके नहीं होते। कारण कि इनके पैरोंमें खुर आदि अवयवोंको अपेक्षा इनके शरीरमें समानता देखी जाती है // 11-167 // अथवा इनमें भेद मान लेनेपर जिस प्रकार इनसे उत्पन्न हुई सन्तान विलक्षण होती है उसी प्रकार तथाकथित भिन्न जातिके दो स्त्री-पुरुषोंकी सन्तान भी विलक्षण होनी चाहिए। परन्तु वहाँ वैसी कोई विलक्षणता नहीं दिखलाई देती, इसलिए गुणों के आधारसे वर्णव्यवस्था सिद्ध होती है // 11-198 // मुखादिसम्भवश्वापि ब्राह्मणो योऽभिधीयते / निर्हेतुः स्वगेहेऽसौ शोभते भाष्यमाणकः // 11-166 // ऋषिशृङ्गादिकानां च मानवानां प्रकीत्यते / ब्राह्मण्यं गुणयोगेन न तु तद्योनिसम्भवात् // 11-200 // जो बिना हेतुके यह कहते हैं कि ब्राह्मण आदि ब्रह्माके मुख आदिसे उत्पन्न हुए है वे ऐसा कहनेवाले अपने घर में ही शोभा पाते हैं // 11