________________ 384 वर्ण, जाति और धर्म विद्याक्रियाचारुगुणैः प्रहीणो न जातिमात्रेण भवेत्स विप्रः / ज्ञानेन शीलेन गुणेन युक्तं तं ब्राह्मणं ब्रह्मविदो वदन्ति // 43 // जो विद्या, क्रिया और गुणोंसे हीन है व. जातिमात्रसे ब्राह्मण नहीं हो सकता / किन्तु जो ज्ञान, शील और गुणोंसे युक्त है, ब्रह्मके जानकर पुरुष उसे ही ब्राह्मण कहते हैं // 43 // व्यासो वसिष्ठः कमठश्च कण्ठः शक्त्युद्गमौ द्रोणपराशरौ च / आचारवन्तस्तपसाभियुक्ता ब्रह्मत्वमायुः प्रतिसम्पदाभिः // 44 // : व्यास, वशिष्ठ, कमठ, कण्ठ, शक्ति, उद्गम, द्रोण और पाराशर ये सब आचार और तपरूप अपनी सम्पत्तिसे युक्त होकर ही ब्राह्मणत्वको प्राप्त हुए थे // 44 // -दरांगचरित सर्ग 25 वर्णत्रयस्य भगवान् सम्भवों मे स्वयोदितः / उत्पत्ति सूत्रकण्ठानां ज्ञातुमिच्छामि साम्प्रतम् // 4-86 // प्राणिघातादिकं कृत्वा कर्म साधु जुगुप्सितम् / परं बहन्त्यमी गर्व धर्मप्राप्तिनिमित्तकम् // 4-87 // तदेषां विपरीतानां उत्पत्तिं वक्तुमर्हसि / कथं चैषां गृहस्थानां भक्तो लोकः प्रवर्तते / / 4-88 // एवं पृष्टो गणेशोऽसाविदं वचनमब्रवीत्। . कृपाङ्गनापरिष्वक्तहृदयोद्तमस्सरः // 4-86 / / हे भगवन् आपने मुझे तीन वर्णों की उत्पत्ति कही। इस समय मैं सूत्र कण्ठोंकी उत्पत्ति कैसे हुई यह सुनना चाहता हूँ // 4-86 // क्योंकि ये धर्मप्राप्तिका निमित्त बतला कर साधुओंके द्वारा निन्दनीय कहे गये प्राणिघात आदि कर्म करके भी गर्विष्ठ हो रहे हैं।॥४-८७।। इसलिए विपरीत श्राचरण करनेवाले इनकी उत्पत्तिका कारण जानना चाहता हूँ। गृहस्थ होते हुए भी जनता इनकी भक्ति क्यों करती है यह भी जानना चाहता हूँ॥४-८८||