________________ 448 वर्ण, जाति और धर्म ___ इसके द्वारा यह कहा गया है कि इस प्रकारकी जिनाज्ञा है ऐसा श्रद्धान करनेसे ही मद्यादिका त्याग करनेवाला देशव्रती होता है, यह कुलधर्म है इत्यादि प्रकारकी बुद्धिसे त्याग करनेवाला नहीं // 2-2 टीका / -सागारधर्मामृत तत्र मूलगुणाश्चाष्टौ गृहिणां व्रतधारिणाम् / कचिदवतिनां यस्मात्सर्वसाधारणा इमे // मद्यमांसमधुत्यागी त्यक्तोदुम्बरपञ्चकः / नासतः श्रावकः ख्यातो नान्यथापि तथा गृही // व्रतधारी गृहस्थोंके आठ मूलगुण होते हैं। तथा कहीं अव्रतियोंके भी ये ही आठ मूलगुण होते हैं, क्योंकि ये सर्वसाधारण धर्म हैं। जिसने मद्य, मांस और मधुके त्यागके साथ पाँच उदुम्बर फलोंका त्याग कर दिया है वह नामसे श्रावक माना गया है, अन्य प्रकार कोई श्रावक नहीं हो सकता। - --लाटीसंहिता देवपूजा गुरूसेवा दत्तिः स्वाध्यायः संयमम् / दयैतानि सुकर्माणि गृहिणां सूत्रधारिणाम् / / मूलगुणसमोपेतः कृतसंस्कारो दृग्रुचिः। इज्यादिषट्कर्मकरो गृही सोऽत्र ससूत्रकः // देवपूजा, गुरुकी सेवा, दान, स्वाध्याय, संयम और दया ये यज्ञोपवीतघारी गृहस्थों के सुकर्म हैं। ___ जो मूलगुणोंसे युक्त है, जिसका संस्कार हो गया है और जो सम्यग्दर्शनसम्पन्न है ऐसा यज्ञोपवीतसे युक्त गृहस्थ यहाँ पर इज्या आदि छह कर्मका करनेवाला होता है। -दानशासन