Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 455
________________ . .. जिनदर्शन-पूजाधिकारमीमांसा 453 - शंका-जिनमहिमाको देखकर भी कितने ही मनुष्य प्रथम सम्यक्त्व को प्राप्त होते हैं, इसलिए चार कारणोंके आश्रयसे प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं ऐसा यहाँ कहना चाहिए ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि इस कारणका जिनबिम्बदर्शनमें अन्तर्भाव हो जाता है। अथवा आकाशमें गमन करनेकी शक्तिसे रहित मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंके चार निकायके देवों द्वारा नन्दीश्वर द्वीपमें जिनप्रतिमाओंकी की जानेवाली महिमाका देखना सम्भव नहीं है, इसलिए मनुष्योंमें जिनमहिमादर्शन नामक चौथा कारण नहीं कहा है। मेरुपर्वतपर की जानेवाली जिनवरकी महिमा विद्याधर मिथ्यादृष्टि देखते हैं, इसलिए यह बादमें जो जिनमहिमादर्शनरूप कारणका अभावरूप अर्थ कहा है वह नहीं कहना चाहिए ऐसा कितने ही प्राचार्य कहते हैं, इसलिए पूर्वोक्त अर्थ ही ग्रहण करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंमें जिनमहिमादर्शनरूप कारण होता अवश्य है, इसलिए उसका जो जिनबिम्बदर्शनमें अन्तर्भाव कर आये हैं वह ठीक है / शंका-लब्धिसम्पन्न ऋषिदर्शन भी प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका एक कारण है उसे यहाँ क्यों नही कहा ? समाधान-नहीं, क्योंकि इस कारणका भी जिनबिम्बदर्शनमें अन्तर्भाव हो जाता है। ऊर्जयन्तपर्वत, चम्पानगर और पावानगर श्रादिका ग्रहण भी इसीसे कह लेना चाहिए, क्योंकि वहाँके जिनबिम्बदर्शन तथा जिननिवृत्तिकथन के बिना प्रथम सम्यक्त्वका ग्रहण नहीं होता। तत्वार्थसूत्रमें नैसर्गिक प्रथम सम्यक्त्वका भी कथन किया गया है उसे

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