Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 453
________________ जिनदर्शन-पूजाधिकारमीमांसा 451 वंशीपत्रकृतोत्तंसाः सर्वतुकुसुमनजः / वंशस्तम्भाश्रिताश्चैते खेटा वंशालया गताः // 26-21 // महाभुजगशोभाकसंदष्टवरभूषणाः / वृक्षमूलमहास्तम्भमाश्रिता वार्तमूलिकाः // 26-22 // ये आर्य विद्याधर हैं। इनका संक्षेपमें कथन किया। हे स्वामिन् ! अब मैं मातंग ( चाण्डाल ) निकायोंका भी कथन करती हूँ, सुनो // 2614 // जो नीले मेघोंके समान नीलवर्ण हैं तथा नीले वस्त्र और माला पहने हुए हैं वे मातंग निकायके विद्याधर ( सिद्धकूट चैत्यालयमें ) मातंग स्तम्भके आश्रयसे बैठे है // 26-15 // जिन्होंने श्मशानकी हड्डी और चमड़ेके आभूषण पहन रखे हैं तथा जो शरीरमें भस्म लपेटे हुए हैं वे श्मशान निलय नामके मातंग श्मशानस्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-16 // जो नील वैडूर्य वर्ण के वस्त्र पहिने हुए हैं वे पाण्डुर नामके मातंग पाण्डु स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-17 / / जो काले हिरणके चर्मके वस्त्र और माला पहने हुए हैं वे कालस्वपाकी नामके मातंग कालस्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-18 // जिनके सिरके केश पिङ्गल हैं तथा जो तपाये हुए सोनेके आभूषण पहिने हुए हैं वे श्वपाकी नामके मातंग श्वपाकी स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-16 // जिनके मुकुटमें लगी हुई नाना प्रकारकी मालाएँ पर्णपत्रके वस्त्रसे आच्छादित हैं वे पार्वतेय नामके मातङ्ग पार्वत स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-20 // जिन्होंने वाँसके पत्तोंके आभूषण तथा सब ऋतुओंके फूलोंकी मालाएँ पहिन रखी हैं वे वंशालय नामके मातंग वंशस्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 26-21 // जो महाभुजककी शोभासे चिन्हित उत्तम आभूषणोंसे युक्त हैं वे ऋक्षमूलक नामके मातंग बृक्षमूलमहास्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं // 16-22 // ---हरिवंशपुराण

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