Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 452
________________ 450 वर्ण, जाति और धर्म [यहाँपर इतना समझना चाहिए कि प्रथम सम्यक्त्वको अन्य के समान स्पृश्य व अस्पृश्य शूद्र मनुष्य भी उत्पन्न करते हैं। ऐसी अवस्था में उनका जातिस्मरणके समान धर्मोपदेशका सुनना और जिनबिम्बका दर्शन करना आगमसे सिद्ध होता है / ] -जीवस्थान सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका तिरश्चां केषाञ्चिजातिस्मरणं केषाञ्चिद्धर्मश्रवणं केषाञ्चिजिनबिम्बदर्शनम् / मनुष्याणामपि तथैव। . तिर्यञ्चोंमें किन्हींके जातिस्मरणसे, किन्हींके धर्मश्रवणसे और किन्हींके जिनबिम्बदर्शनसे प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति होती है। मनुष्योंके भी इसी प्रकार प्रथम सम्यत्क्वकी उत्पत्ति जाननी चाहिए। . -त० सू०, अ० 1 सू० 7 सर्वार्थसिद्धि अमी विद्याधरा ह्यार्याः समासेन समीरिताः। मातङ्गानामपि स्वामिन् निकायान् शृणु वच्मि ते // 26-14 // नीलाम्बुदचयश्यामा नीलाम्बरवरस्रजः / अमी मातङ्गनामानो मातस्तम्भसङ्गताः // 26-15 // श्मशानास्थिकृत्तोत्तंसा भस्मरेणुविधूसराः / श्मशाननिलयास्वेते श्मशानस्तम्भसंश्रिताः // 26-16 // नीलवैडूर्यवर्णानि धारयन्त्यम्बराणि ये। पाण्डुरस्तम्भमेत्यामी स्थिताः पाण्डुरखेचराः // 26-17 // कृष्णाजिनधरास्त्वेते कृष्णचर्माम्बरस्रजः / कालस्तम्भं समभ्येत्य स्थिताः कालस्वपाकिनः // 26-18 // पिङ्गलमूर्धजैर्युक्तास्तप्तकाञ्चनभूषणाः / श्वपाकीनां च विद्यानां श्रिताः स्तम्भं श्वपाकिनः // 26-16 // पर्णपत्रांशुकच्छन्नविचित्रमुकुटनजः। पार्वतेया इति ख्याताः पार्वतं स्तम्भमाश्रिताः // 26-20 //

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