Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
________________ 452 वर्ण, जाति और धर्म आचारानवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शरीरशुद्धिश्च करोति शूद्रानपि देवद्विजातितपस्विपरिकर्मसु योग्यान् / आचारको निर्दोषता, गृह-पात्रादिकी शुद्धि और शरीर शुद्धि ये शूद्रोंको भी देव, द्विजाति और तपस्वियोंकी उपासनाके योग्य करते हैं। -नीतिवाक्यामृत कधं जिणविंबदसणं पढमसम्मत्तुप्पत्तीए कारणं ? जिणबिंबदंसणेण णिधत्त-णिकाचिदस्स वि मिच्छत्तादिकम्मकलावस्स खयदंलणादो। शंका-जिनबिम्बदर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण कैसे है ? समाधान-जिनबिम्बका दर्शन करनेसे निपत्ति और निकाचितरूप मिथ्यात्व आदि कर्मकलापका क्षय देखा जाता है, इसलिए उसे प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण कहा है। -जीवस्थान सम्यक्त्वोत्पत्तिचूलिका सूत्र 22 धवला जिणमाहेमं दट्ठ ण वि केइं पढमसम्मत्तं पडिबजंता अस्थि तेण चदुहि कारणेहि पढमसम्मत्तं पडिवज्जति त्ति वत्तव्वं ? ण एस दोसो, एदस्स जिणबिंबदसणे अंतब्भावादो। अधवा. मणुसमिच्छाइट्ठीणं गयणगमणविरहियाणं चउम्विहदेवणिकाएहि गंदीसरजिणवरपडिमाणं करिमाणमहामहिमालोयणे संभवाभावा / मेरुजिणवरमहिमामओ विजाधरमिच्छादिठिणो पेच्छंति त्ति एस अस्थो ण वत्तव्वओ त्ति केई भणंति तेण पुव्वुत्तो चेव अस्थो घेत्तव्यो। लद्धिसंपण्णरिसिदंसणं पि पढमसम्मत्तप्पत्तीए कारणं होदि तमेत्थ पुध किण्ण भण्णदे ? ण, एदस्स वि जिणबिंबदसणे अंतब्भावादो। उज्जंत-चंपा-पावाणयरादिदंसणं पि एदेणेव घेत्तव्वं / कुदो ? तत्थतणजिणबिंबदसणजिणणिव्वुइगमणकहणेहि विणा पढमसम्मत्तगहणाभावा / गइसग्गियमवि पढमसम्मत्तं तच्चढे उत्तं तं हि एत्थ दटव्वं, जाइस्सरणजिणबिंबदंसणेहि विणा उप्पजमाणणइसग्गियपढमसम्मत्तस्स असंभवादो।
Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460