Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 451
________________ - जिनदर्शन-पूजाधिकारमीमांसा मद्यमांसमधुत्यागसंयुक्ताणुव्रतानि नुः। * अष्टौ मूलगुणाः पञ्चोदुम्बरेश्चार्भकेष्वपि // 16 // मद्य, मांस और मधुके त्यागके साथ पाँच अणुव्रत ये आठ मूलगुण हैं / पाँच उदुम्बर फलोंके साथ तीन मकारोंका त्याग तो बालकोंमें भी होता है // 16 // -रत्नमाला जिनदर्शन-पूजाधिकारमीमांसा तिरिक्खा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्त उप्पादेति / // 21 // तीहि कारणेहि पढमसम्मत्त उप्पादेंति-के जाइस्सरा, केई सोऊण केई जिणबिंबं दण // 22 // तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि कितने कारणोंके आश्रयसे प्रथम (प्रथमोपशम) सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं // 21 // तीन कारणोंके आश्रयसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं-कितने ही जातिस्मरणके आश्रयसे, कितने ही धर्मोपदेश सुनकर और कितने ही जिनबिम्बका दर्शनकर प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करते हैं // 22 // . मणुस्सा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्त उप्पादेति // 26 // तीहि कारणेहि पढमसम्मत्त उप्पादंति—केइ जाइस्सरा, केई सोऊण, केइ जिणबिंबं द ठूण // 30 // ___ मनुष्य मिथ्यादृष्टि कितने कारणोंके आश्रयसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं // 26 // तीन कारणोंके आश्रयसे उत्पन्न करते हैं-कितने जातिस्मरणके आश्रयसे, कितने ही धर्मोपदेश सुनकर और कितने ही जिनबिम्बका दर्शनकर प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं // 30 // . 26

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