Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 422
________________ 420 वर्ण, जाति और धर्म 166 // जो दीक्षा योग्य कुलमें नहीं उत्पन्न हुए हैं और विद्या तथा शिल्प कर्म द्वारा आजीविका करते हैं वे उपनयन आदि संस्कारके योग्य नहीं माने गये हैं // 40-170 // अपने योग्य व्रतोंको धारण करनेवाले उनके लिये सन्यास पर्यन्त एक धोती धारण करना यह योग्य चिन्ह हो सकता है // 40-171 // इन्हें निरामिष भोजन करना चाहिए, कुलस्त्रीके सेवनका व्रत लेना चाहिए, अनारम्भ वधका त्याग करना चाहिए और अभक्ष्य तथा अपेय पदार्थ नहीं ग्रहण करना चाहिए // 40-172 // इस प्रकार व्रतोंसे पवित्र हुई अत्यन्त शुद्ध वृत्तिको जो द्विज धारण करता है उसके सम्पूर्ण व्रतचार्या विधि समझनी चाहिए // 40-173 // , -महापुराण येषां भुक्तं पात्रं संस्कारेण शुद्ध यति ते पात्रमहन्तीति पत्र्याः तच्छूद्रावयवाः // 2 // 1 // 10 // भोजनके कार्यमें आया हुआ जिनका पात्र संस्कार करनेसे शुद्ध हो जाता है वे पाव्यशूद्र हैं जो शूद्रोंके अन्तर्गत हैं।' -अमोघवृत्ति - वर्णेनाद्रूपस्यायोग्यास्तेषां द्वन्द्व एकवद्भवति / येन रूपेणार्हन्त्यमवाप्यते तदिह नैर्ग्रन्थ्यमहदूपमभिप्रेतम् / अतिशयोपेतस्याहंद्रुपस्य प्रातिहार्यसमन्वितस्य बहुतरमयोग्यमिति नेह तद् गृह्यते / तक्षायस्कार कुलालवरूढं रजकतन्तुवायम् / नन्वेतेष्वप्येकवद्भावः प्राप्नोति / चण्डालमृतपाः। न दधिपयादिष्वन्तर्भूतो द्वन्द्वो द्रष्टव्यः। वर्णेनेति किम् / मूकवधिराः / एते करणदोषेणायोग्याः / अहंदूपायोग्यानामिति किम् / ब्राह्मणक्षत्रियौ। वर्णसे जो अहंद्र पके अयोग्य हैं उनके वाची शब्दोंका द्वन्द्वसमासमें एकवद्भाव होता है। जिस रूपमें आर्हन्त्यपद प्राप्त होता है वह निर्ग्रन्थ अवस्था यहाँपर अहंद्र पपदसे अभिप्रेत है। अनेक अतिशयसम्पन्न और

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