Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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________________ 441 समवसृतिप्रवेशमीमांसा तत्रापश्यन्मुनीनिद्धबोधान् देवीश्च कल्पजाः / सार्यिका नृपकान्ताश्च ज्योतिर्वन्योरगामरीः // 33-107 // भावनव्यन्तरज्योतिःकल्पेन्द्रान्पार्थिवान्मृगान् / भगवत्पादसंप्रेक्षाप्रीतिप्रोत्फुल्ललोचनान् // 33-108 // समवसरणके उसी श्रीमण्डपके मध्यमें उन्होंने जिनेन्द्रभगवान्के चरणोंके दर्शन करनेसे उत्पन्न हुई प्रीतिसे जिनके नेत्र प्रफुल्लित हो रहे हैं ऐसे क्रमसे बैठे हुए उज्ज्वल ज्ञानके धारी मुनि, कल्पवासिनी देवियाँ, आर्यिकाओंसे युक्त रानी आदि स्त्रियाँ, ज्योतिष, व्यन्तर और भवनवासी देवोंकी स्त्रियाँ, भवनवासी व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्ववासी देव, राजा आदि मनुष्य और मृग आदि पशु ये बारह गण देखे // 33-107, 108 // -महापुराग वीतग्रन्थाः कल्पनार्योऽथार्या ज्योतिभौंमा हि स्त्रियो भावनाश्च / भौमज्योतिःकल्पदेवा मनुष्यास्तिर्यग्यूथान्येषु तस्थुः क्रमेण॥२०-६०॥ उस सभाके बारह कोठोंमें क्रमसे मुनि, कल्पवासिनी देवियाँ, आर्यिका, ज्योतिष्क देवाङ्गना, व्यन्तर देवाङ्गना, भवनवासिनी देवाङ्गना, भवनवासी देव, व्यन्तरदेव, कल्पवासी देव,मनुष्य और पशुओंके यूथ बैठे।।२०-६०॥ -धर्मशर्माभ्युदय दत्ताद्या मुनिभिः समं गणधराः कल्पस्त्रियः सजिता ज्योतिय॑न्तरभावनामरवधूसंघास्ततो भावनाः / वन्या ज्योतिषकल्पजाश्च विबुधाः स्वस्योदयाकांक्षिणः तस्थुादशसु प्रदक्षिणममी कोष्ठेषु मां मृगाः // 18-61 // समवसरणके बारह कोठोंमें अपने उदयकी आकांक्षा रखनेवाले मुनियों के साथ दत्त आदि गणधर, कल्पवासिनी स्त्रियाँ, आर्यिका, ज्योतिष्क देवियाँ, व्यन्तर देवियाँ, भवनवासिनी देवियाँ, भवनवासी देव, व्यन्तर
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