Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 447
________________ गृहस्थोंके आवश्यककर्मोकी मीमांसा 445 मधुमांसपरित्यागः पञ्चोदुम्बरवर्जनम् / हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात्सार्वकालिकम् // 38-122 // उसके मधुत्याग, मांगत्याग, पाँच उदुम्बर फलोंका त्याग और हिंसा आदि पाँच स्थूल पापोंका त्याग ये सदा काल रहनेवाले व्रत होते हैं // 38-122 // दानं पूजां च शीलं च दिने पर्वण्युपोषितम् / धर्मश्चतुर्विधः सोऽयं आम्नातो गृहमेधिनाम् // 41-104 // दान देना, पूजा करना, शोल पालना और पर्व दिनोंमें उपवास करना यह गृहस्थोंका चार प्रकारका धर्म माना गया है // 41-104 // --महापुराण गृहस्थस्येज्या वार्ता दत्तिः स्वाथ्यायः संयमः तप इत्यार्यषटकर्माणि भवन्ति / ... वार्ताऽसि मषि - कृषि - वाणिज्यादिशिल्पकर्मभिर्विशुद्धवृत्यार्थोपार्जनमिति। . ____ गृहस्थके इच्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप ये छह आर्य षटकर्म होते हैं। ......."असि, मषि, कृषि और वाणिज्यादि तथा शिल्प कर्म द्वारा विशुद्धि आजीविका करके अर्थका उपार्जन करना वार्ता है। --चारित्रसार देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने // 6-7 // देवपूजा, गुरुकी उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये गृहस्थों के प्रतिदिन करने योग्य छह कर्म हैं // 7 // -पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका

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