________________ 313 ब्राह्मणवर्णमीमांसा परन्तुं चक्रवतोंके पुनः आग्रह करनेपर वे अन्य प्रासुक मार्गसे राज..प्राङ्गणको उल्लंघन कर उनके पास पहुँचाये गये // 38-15 // प्राक् केन हेतुना यूयं नायाताः पुनरागताः / केन तेति पृष्टान्ते प्रत्यभाषन्त चक्रिणम् // 38-16 // पहले किस कारणसे नहीं आये थे और अब किस कारणसे आये हो इस प्रकार चक्रवर्ती द्वारा पूछे जानेपर उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा // 38-16 // प्रवालपत्रपुष्पादेः पर्वणि व्यपरोपणम् / न कल्पतेऽद्य तजानां जन्तूनां नोऽनभिद्रुहाम् // 38-17 // आज पर्वके दिन प्रवाल, पत्र, और पुष्प आदिका तथा उनमें उत्पन्न हुए निर्दोष जीवोंका विघात करना उचित नहीं है // 38-17 // सन्त्येवानन्तशो जीवा हरितेष्वङ्कुरादिषु / निगोता इति सार्वज्ञं देवास्माभिः श्रुतं वचः // 38-18 // हे देव हमने सर्वज्ञदेवकी वाणीमें सुना है कि इन हरे अंकुर श्रादिमें अनन्त निगोदिया जीव वास करते हैं // 38-18 // तस्मानास्माभिराक्रान्तं अद्यत्वे त्वत्गृहाङ्गणम् / कृतोपहारमाादैः फलपुष्पाकुरादिभिः // 38-16 // इसलिए हरित फल, पुष्प और अंकुरोसे सुशोभित राजप्राङ्गणमेंसे हम लोग नहीं आये हैं // 38-16 // इति तद्वचनात् सर्वान् सोऽभिनन्द्य दृढव्रतान् / पूजयामास लघमीवान् दानमानादिसस्कृतैः // 38-20 / इस प्रकार उनके वचनोंसे सन्तुष्ट हुए सम्पत्तिशाली भरतने व्रतोंमें दृढ़ रहनेवाले उन सबकी प्रशंसा कर उन्हें दान मान आदि सत्कारसे सन्मानित किया // 38-20 //