Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 402
________________ 400 वर्ण, जाति और धर्म अहिंसासव्रतो ज्ञानी निरीहो निष्परिग्रहः। . यः स्यात्स ब्राह्मणः सत्यं न तु जातिमदान्धतः / / जो सभीचीन अहिंसाव्रतका पालन करता है, ज्ञानवान् है, सांसारिक भोगाकांक्षासे रहित है और परिग्रह रहित है, वास्तवमें वही ब्राह्मण है। किन्तु जो जातिमदसे अन्धा हो रहा है वह ब्राह्मण नहीं है। .. -यशस्तिलकचम्पू आश्वास 8 पृ० 412 विवाह मीमांसा , कन्यादानं विवाहः / परस्य विवाहः परविवाहः / परविवाहस्य करणं परविवाहकरणम् / परपुरुषानेति गच्छतीत्येवंशीला इत्वरी। कुत्सिता इस्वरी कुत्सायां क इत्वरिका / या एकपुरुषभर्तृका सा परिगृहीता। या गणिकात्वेन पुंश्चलीत्वेन वा परपुरुषगमनशीला अस्वामिका सा अपरिगृहीता / परिगृहीता च अपरिगृहीता च परिगृहीतापरिगृहीते। इत्वरिके च ते परिगृहीतापरिगृहीते च इत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीते / तयोगमने इत्वरिकापरिगृहीतापरिग्रहीतांगमने। कन्याका ग्रहण करना विवाह है। किसी अन्यका विवाह परविवाह है और इसका करना परविवाहकरण है। जिसका स्वभाव पर. पुरुषके पास जाना आना है वह इत्वरी कहलाती है। इत्वरी अभिसारिका / इसमें भी जो अत्यन्त आचरट होती है वह इत्वरिका कहलाती है। यहाँ कुत्सित अर्थमें 'क' प्रत्यय होकर इत्वरिका शब्द बना है। जिसका एक पुरुष भर्ता है वह परिगृहीता कहलाती है। तथा जो वेश्या या व्यभिचारिणी होनेसे पर पुरुषके पास जाती आती रहती है और जिसका कोई स्वामी नहीं है वह अपरिगृहीता कहलाती है / परिगृहीता इत्वरिकामें गमन करना परिगृहीताइत्वरिकागमन है और अपरिगृहीता इत्वरिकामें गमन करना अपरिगृहीताइत्वरिकागमन है। -त० सू०७-२८, सर्वार्थसिद्धि

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