Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 407
________________ चरित्रग्रहणमीमांसा उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं और कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं // 208 / / __पंचमीए पुढवीए णेरइया णिरयादो गेरइया उधटिदसमाणा कदि गदीयो आगच्छति // 20 // दुवे गदीओ आगच्छंति-तिरिक्खगदि चेव मणुसगदि चेव // 210 // तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केई छ उप्पाएंति // 211 // मणुस्सेसु उववण्णलया मणुसा केइमट्टमुप्पाएंतिकेइमाभिंणिबोहियणाणमुप्पाएंति केई सुदणाणमुप्पाएंति केइमोहिणाणमुप्पाएंति केई मणपजवणाणमुप्पाएंति के सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति केई सम्मत्तमुप्पाएंति केइं संजमासंजममुप्पाएंति केइं संजममुप्पाएंति // 212 // ' ____ पाँचवी पृथिवीके नारकी नरकसे निकल कर कितनी गतियोंको प्राप्त होते हैं // 206 // तिर्यञ्चगति और मनुप्यगति इन दो गतियोंको प्राप्त होते हैं // 210 // नरकसे पाकर तिर्यञ्चगतिमें उत्पन्न हुए तिर्यञ्च कोई पूर्वोक्त छहको उत्पन्न करते हैं // 211 // तथा नरकसे आकर मनुष्यगतिमें उत्पन्न हुए मनुष्य कोई आठको उत्पन्न करते हैं--कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं // 212 // चउत्थीए पुढवीए णेरइया णिरयादो गेरइया उवद्विदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति // 213 // दुवे गदीओ आगच्छंति-तिरिक्खगई चेव मणुसगई चेव // 214 // तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केइं छ उप्पाएंति // 215 // मणुसेसु उववण्णलया मणुसा केई दस उप्पाएंतिकेइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति केई सुदणाणमुप्पाएंति केई मोहिणाणमुप्पाएंति केइ मणपजवणाणमुप्पाएंति केइ केवलणाणमुप्पाएंति केई

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