Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 408
________________ वर्ण, जाति और धर्म सम्मामिच्छत्तमुप्पाए ति केइ सम्मत्तमुष्पाए ति के संजमासंजममुप्पाए ति केइ संजममुप्पाए ति / णो बलदेवत्तं जो वासुदेवत्तं गो' ' चक्कवट्टित्तं णो तित्थयरत्तं / केइमंतयडा होदूण सिझति बुज्झति मुचंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुक्खाणमंतं परिविजाणंति // 216 // चौथी पृथिवीके नारको नरकसे निकल कर कितनी गतियोंको प्राप्त होते हैं // 213 // तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति इन दो गतियोंको ही प्राप्त होते हैं // 214 // नरकसे श्राकर तिर्यञ्चगतिमें उत्पन्न हुए कोई तिर्यञ्च पूर्वोक्त छहको उत्पन्न करते हैं // 215 // मनुष्यगतिमें उत्पन्न हुए कोई मनुष्य दसको उत्पन्न करते हैं-कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते है, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं / ये बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर नहीं होते। मात्र कितने ही अन्तःकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाणको प्राप्त होते हैं और सब दुखोंका अन्त कर अनन्त सुखका अनुभव करते हैं // 216 // तिसु उवरिमासु पुढवीसु गैरइया णिरयादो गेरइया उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति // 217 // दुवे गदीओ आगच्छंति-तिरिक्खगदि मणुसगदि चेव // 218 // तिरिक्खेसु उववण्णलया तिरिक्खा केइ छ उप्पाएंति // 21 // मणुसेसु उववण्णलया मणुस्सा केइमेक्कारस उप्पाएंति केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति केई सुदणाणमुप्पाएंति केई मणपजवणाणमुप्पाए ति केइमोहिणाणमुप्पाए ति केइ केवलणाणमुप्पाएंति केइ सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति केइ सम्मत्तमुप्पाएंति केइ संजमासंजममुप्पाए ति केई संजममुप्पाए ति / णो बलदेवत्तं णो वासुदेवत्तमुप्पाए ति णो चक्कवट्टित्तमुप्पाए ति / केई तित्थयरत्तमुप्पाए ति केइमंतयडा

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