Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 412
________________ 410 वर्ण, जाति और धर्म बलदेव नहीं होते, वासुदेव नहीं होते, चक्रवर्ती नहीं होते और तीर्थङ्कर नहीं होते, तथा कितने ही मनुष्य अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं तथा सब दुखोंका अन्तकर अनन्त सुखका अनुभव करते हैं // 233 // सोहम्मीसाण जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवा जधा देवगदिभंगो // 234 // आणादादि जाव णवगेवज विमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीमो आगच्छंति // 335 // एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति // 236 // मणुस्सेसु उववण्णल्लया मणुस्सा केई सब्वे उप्पाए ति // 237 // अणुदिस जाव अवराइदविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति // 23 // एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति // 23 // मणुस्सेसु उववण्णल्लया मणुस्सा तेसिमाभिगिबोहियणाणं सुदणाणं णियमा अस्थि / ओहिणाणं सिया अस्थि सिया गत्थि / केई मणपजवणाणमुप्पाए ति केइं केवलणाणमुप्पाए ति / सम्मामिच्छत्तं णस्थि / सम्मत्तं णियमा अस्थि / केइ संजमासंजममुप्पाए ति / संजमं णियमा उप्पाएंति / केइ बलदेवत्तमुप्पाए ति णो वासुदेवत्तमुप्पाए ति / केइ चक्कवटित्तमुप्पाए ति केई तित्थयरत्तमुप्पाएति केइमंतयडा होदूण सिझंति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सम्वदुःखाणमंतं परिविजाणंति // 240 // सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति // 241 // एक्कं हि मणुसगदिमागच्छंति // 242 // मणुसेसु उववण्णलया मणुसा तेसिमाभिणिबोहियणाणं सुदणाणं ओहिणाणं च णियमा अस्थि / केइ मणपज्जवणाणमुप्पाएंति केवलणाणं णियमा उप्पाए ति / सम्मामिच्छत्तं गथि सम्मत्तं णियमा अस्थि / केई संजमासंजममुप्पाए ति संजमं णियमा उप्पाए ति / केई बलदेवत्तमुप्पाए ति णो वासुदेवत्तमुप्पाएंति केइ चक्कवट्टित्तमुप्पाए ति केइ तित्थयरत्तमुप्पाए ति। सम्वे वे णिममा अंतयडा होदूण सिझति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमंत परिविजागति // 24 //

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