________________ जातिमीमांसा 347 पापरहित वृत्ति ही इनकी उत्तम जाति है / जो दान, पूजा और अध्ययनकी * मुख्यतासे तथा व्रतोंकी शुद्धिसे सुसंस्कृत है // 38-44|| "इसलिए तप और श्रुत ही जातिसंस्कारका कारण कहा गया है। जो इन दोनों क्रियाओंसे असंस्कृत है वह जातिमात्रसे ही द्विज है / / 38-47 / / जो क्रिया और गर्भ इन दोसे जन्मा है ऐसा द्विजन्मा हमें इष्ट है। परन्तु जो क्रिया मन्त्रसे हीन है वह केवल नामधारी द्विज है / / 38-48 / / ज्ञानजः स तु संस्कारः सम्यग्ज्ञानमनुत्तरम् / यदाथ लभते साक्षात् सर्वविन्मुखतः कृती // 36-62 // तदैष परमज्ञानगर्भात् संस्कारजन्मना / जातो भवेद् द्विजन्मेति व्रतैः शोलश्च भूषितः // 36-63 // व्रतचिह्न भवेदस्य सूत्रं मन्त्रपुरस्सरम् / सर्वज्ञाज्ञाप्रधानस्य द्रव्यभावविकल्पितम् // 36-64 // यज्ञोपवीतमस्य स्याद् द्रव्यतस्त्रिगुणात्मकम् / सूत्रमौपासिकं तु स्याद् भावरूढस्त्रिभिर्गुणैः // 36-65 // वह संस्कार ज्ञानसे उत्पन्न होता है और सबसे उत्कृष्ट ज्ञान सम्यग्ज्ञान है / जिस समय वह कृती सर्वज्ञके मुखसे उसे प्राप्त करता है / / 36-62 / / उस समय वह उत्तम ज्ञानरूपी गर्भसे संस्काररूपी जन्म लेकर उत्पन्न होता है तथा व्रतों और शीलोंसे विभूषित होकर द्विज होता है // 36-63 / / सर्वज्ञकी आज्ञाको प्रधान माननेवाले उसके मन्त्रपूर्वक धारण किया गया सूत्र व्रतका चिन्ह है। वह सूत्र द्रव्य और भावके भेदसे दो प्रकारका है // 36-64|| तीन लरका यज्ञोपवीत द्रव्य सूत्र है और भावरूप तीन गुणोंसे निर्मित उपासकका भावसूत्र है / / 36-65 / / -महापुराण वर्णाकृत्यादिभेदानां देहेऽस्मिन्नप्यदर्शनात् / * * ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्यैर्गर्भाधानप्रदर्शनात् / / 74-461 //