Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 357
________________ जातिमीमांसा 355 त्र्याप्ति प्रवादके साथ है, अर्थात् जो व्यभिचार करेगी उसका प्रवाद अवश्य होगा सो यह सब कहना ठीक नहीं है, क्योंकि बहुतसे कामुक ऐसे होते हैं जो अत्यन्त प्रच्छन्न होकर व्यभिचार करते हैं फिर भी उनका प्रवाद नहीं होता, इसलिए व्यभिचारकी प्रवादके साथ व्याप्ति मानना उचित नहीं है / परिणामस्वरूप माता-पिताकी निर्दोषता किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं होती, इसलिए ब्राह्मण जातिके प्रत्यक्षीकरणमें इसका उपदेश आँखके लिए रञ्चमात्र भी सहायक नहीं है। नापि आचारविशेषः, स हि ब्राह्मण्यस्यासाधारणो याजनाध्यापनप्रतिग्रहादिः / स च तत्प्रत्यक्षतानिमित्तं न भवति, अव्याप्रतिव्याप्ते श्वानुषङ्गात्, याजनादिरहितेषु हि ब्राह्मणेष्वपि तद्वयवहाराभावप्रसङ्गादव्याप्तिः शूद्रेष्वपि अखिलस्य याजनाद्याचारस्योपलब्धितो ब्राह्मण्यानुषङ्गाच्चातिव्याप्तिः। अथ मिथ्यासौ आचारविशेषस्तत्र, अन्यत्र कुतः सत्यः ? ब्राह्मण्यसिद्धेश्चेत्; अन्योन्याश्रयः-सिद्धे हि आचारसत्यत्वे ब्राह्मण्यसिद्धिः तसिद्धौ च आचारसत्यत्वसिद्धिरिति / किञ्च आचाराद् ब्राह्मण्यसिद्धयभ्युपगमे व्रतबन्धात् पूर्वमब्राह्मण्यप्रसङ्गः / तन्न आचारोऽपि तत्प्रत्यक्षता प्रत्यङ्गम् / .. . ___4. श्राचार विशेष भी ब्राह्मण आदि जातिका ज्ञान करानेमें सहायक नहीं होता। आपके यहाँ ब्राह्मण जातिका असाधारण आचार विशेष याजन, अध्यापन और प्रतिग्रह माना गया है, परन्तु वह ब्राह्मण जातिका प्रत्यक्ष ज्ञान करानेमें सहायक नहीं है, क्योंकि उसे ब्राह्मण जातिका प्रत्यक्ष ज्ञान कराने में सहायक माननेपर अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोष आते हैं। यथा-जो ब्राह्मण याजन आदि कार्य नहीं करते उनमें ब्राह्मण जातिके व्यवहारका अभाव प्राप्त होनेसे अव्याप्ति दोष आता है और शूद्रोंमें याजन आदि समस्त प्राचार धर्मकी उपलब्धि होती है, इसलिए उनके भी ब्राह्मण होनेका प्रसङ्ग प्राप्त होनेसे अतिव्याप्ति दोष आता है। यदि कहो कि शूद्रों में जो याजन आदि प्राचार विशेष उपलब्ध होता है वह मिथ्या है तो हम

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