________________ ___ वर्ण, जाति और धर्म तेनामिन् भारते वर्षे धर्मतीर्थप्रवर्तने / ततः कृतावतारेण क्षात्रसर्गः प्रवर्तितः // 42-6 // तत्कथं कर्मभूमित्वादद्यत्वे द्वितयी प्रजा. कर्तव्या रक्षणीयका प्रजान्या रक्षणोद्यता // 42-10 रक्षणाभ्युद्यता येऽत्र क्षत्रियाः स्युस्तदन्वयाः / सोऽन्वयोऽनादिसन्तत्या बीजवृक्षवदिष्यते 42-11 // विशेषतस्तु तत्सर्गः क्षेत्रकालव्यपेक्षया।। तेषां समुचिताचारः प्रजार्थे न्यायवृत्तिता // 42-12 // धर्मतीर्थकी प्रवृत्तिके लिए इस भारतवर्षमें जन्म लेकर भगवान् ऋषभदेवने क्षत्रियोंकी यह सृष्टि चलाई // 41-6 // क्योंकि कर्मभूमिज होनेसे वर्तमान में दो प्रकारकी प्रजा पाई जाती है। एक वह जो रक्षा करने योग्य होती है और दूसरी वह जो. रक्षा करनेमें उद्यत होती है // 42-10 // जो रक्षा करनेमें उद्यत होते हैं उनको परम्पराको क्षत्रिय कहते हैं। बीज-वृक्षके समान उनकी वह परम्परा अनादिकालसे चली आ रही है // 42-11 / / विशेषता इतनी है कि देश और कालकी अपेक्षा उनको सृष्टि होती है / प्रजाके लिए न्यायवृत्तिका आलम्बन लेना ही उनका समुचित आचार है // 42-12 // -महापुराण वर्णाकृत्यादिभेदानां देहेऽस्मिन्नप्यदर्शनात् / ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्यैर्गर्भाधानप्रदर्शनात् // 74-461 // नास्ति जातिकृतो भेदो मनुष्याणां गवाश्ववत् / आकृतिग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्प्यते // 74-462 // जातिगोत्रादिकर्माणि शुक्लध्यानस्य हेतवः / येषु ते स्युस्त्रयो वर्णाः शेषाः शूद्राः प्रकीर्तिताः // 74-463 // अच्छेदो मुक्तियोग्यायाः विदेहे जातिसन्ततेः। . तद्धेतुर्नामगोत्राढ्यजीवाविच्छिन्नसम्भवात् // 74-464 //