________________ जातिमीमांसा 365 कालसे उनके कुटुम्बमें कभी भी स्खलन न हो यह सम्भव नहीं है // 1825, 28 // वास्तवमें संयम,नियम, शील, तप, दान, दम और दया ये गुण तात्त्विक रूपसे जिस किसी भी जातिमें विद्यमान हों, सजन पुरुष उसी जातिको पूजनीय मानते हैं // 18-26 // क्योंकि योजनगन्धा (धीवरी) आदिकी कुक्षिसे उत्पन्न हुए व्यास आदि तपस्वियोंकी महापूजा होती हुई देखी गई है, इसलिए सबको तपश्चरणमें अपना उपयोग लगाना चाहिए // 18-30 // नीचजातिमें उत्पन्न होकर भी शीलवान् पुरुष स्वर्ग गये हैं तथा शील और संयमका नाश करनेवाले कुलीन पुरुष नरकको प्राप्त हुए हैं // 18-31 // यतः गुणोंसे अच्छी जाति प्राप्त होती है और गुणोंका नाश होनेसे वह भी नष्ट हो जाती है, इसलिए बुद्धिमान् पुरुषोंको गुणोंमें अत्यन्त आदर करना चाहिए // 18-32 // सजन पुरुषोंको अपनेको नीच बनानेवाला जातिमद कभी नहीं करना चाहिए और जिससे अपने में उच्चपना प्रगट हो ऐसे शीलका आदर करना चाहिए // 18-33 / / -धर्मपरीक्षा जातयोऽनादयः सर्वास्तक्रियापि तथाविधा। श्रुतिः शास्त्रान्तर वास्तु प्रमाणं कात्र नः क्षतिः // स्वजात्यैव विशुद्धानां वर्णानामिह रत्नवत् / तरिक्रयाविनियोगाय जैनागमविधिः परम् // सब जातियाँ और उनका आचार-व्यवहार अनादि है। इसमें वेद और मनुस्मृति आदि दूसरे शास्त्रोंको प्रमाण माननेमें हमारी ( जैनोंकी) कोई हानि नहीं है // रत्नोंके समान वर्ण अपनी अपनी जातिके आधारसे ही शुद्ध हैं। उनका आचार-व्यवहार उसी प्रकार चले इसमें जैनागमविधि उत्तम साधन है ।पृ० 473 // सा जातिः परलोकाय यस्याः सद्धर्मसम्भवः / ___ न हि संस्याय जायेत शुद्धा भूर्बीजवर्जिता॥ .