________________ वर्णमीमांसा 301 करके आजीविका करने लगे वे शूद्र हुए। शूद्रोंके दो भेद हैं—कारु और अकारु / धोबी आदि कारु शूद्र हैं और शेष अकारु शूद्र हैं // 16184, 185 // कारु शूद्रोंके दो भेद हैं-स्पृश्य और अस्पृश्य / जो प्रजा से बाहर रहते हैं वे अस्पृश्य शूद्र हैं और नाई आदि स्पृश्य शद्र हैं 16186 // सब प्रजा यथायोग्य अपने अपने कर्मको सांकर्यके विना करने लगी। विवाह, जाति सम्बन्ध और व्यवहार नियमानुसार चलने लगे // 16-187 // संसारमें जितनी पापरहित आजीविका थी वह सब भगवान् ऋषभदेवको सम्मतिसे प्रवृत्त हुई / सो ठीक ही है, क्योंकि वे सनातन ब्रह्मा थे // 16-188 // युगके आदि ब्रह्मा भगवान् ऋषभदेवने इस प्रकार युगका निर्माण किया, इसलिए पुराणके जानकर उसे कृतयुग इस नामसे जानते हैं // 16-186 // अथाधिराज्यमासाद्य नाभिराजस्य सन्निधौ / प्रजानां पालने यत्नमकरोदिति विश्वसृट् // 16-241 // कृत्वादितः प्रजासर्ग तद् वृत्तिनियमं पुनः। स्वधर्मानतिवृत्त्येव नियच्छन्नन्वशात् प्रजाः // 16-242 // स्वदोभ्यां धारयन् शस्त्रं क्षत्रियानसृजद्विभुः / ततत्राणे नियुक्ता हि क्षत्रियाः शस्त्रपाणयः // 16-243 // उरूभ्यां दर्शयन् यात्रा अनाक्षीद् वणिजः प्रभुः / जलस्थलादियात्राभिः तद्वृत्तिर्वार्त्तया यतः // 16-244 // न्यवृत्तिनियतान शूद्रान् पद्भ्यामेवासृजत् सुधीः। . वर्णोत्तमेषु शुश्रूषा तवृत्तिकधा स्मृता // 16-245 // मुखतोऽध्यापयन् शास्त्रं भरतः सृष्यति द्विजान् / अधीत्यध्यापने दानं प्रतीच्छेज्येति तस्क्रियाः // 16-246 // शूदा शूद्रेण वोढव्या नान्या तां स्वां च नैगमः : वहेत् स्वां ते च राजन्यः स्वां द्विजन्मा क्वचिच्च ताः१६-२४७