________________ 365 वर्णमीमांसा इतिप्रवादैरतिलोभमोहैद्वेषः पुनवर्णविपर्ययैश्च / - विश्रम्भघातैः स्थितिसत्यभेदैर्युक्तः कलिस्तत्र भविष्यतीति // 10 // क्रियाविशेषाद्वयवहारमात्राद् दयाभिरक्षाकृषिशिल्पभेदात् / शिष्टाश्च वर्णाश्चतुरो वदन्ति न चान्यथा वर्णचतुष्टयं स्यात् // 11 // अनन्तर सम्राट् वराङ्गने राज्यसभा धर्मकथा और पुराणका व्याख्यान करते हुए मिथ्यात्व महामोहसे मलिन चित्तवाले सभासदोंके चित्तको प्रसन्न करनेके लिए इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया // 1 // यदि सब प्रजा एक है तो वह चार जातियोंमें कैसे विभक्त हो गई, क्योंकि प्रमाण, दृष्टान्त और नयविधिसे परीक्षा करनेपर जातिव्यवस्था खण्ड-खण्ड हो जाती है / / 2 / / उदाहरणार्थ एक पिताके यदि चार पुत्र हैं तो उन सबकी एक ही जाति होगी। इसी प्रकार सब मनुष्योंका पिता (मनुष्यजाति नामकर्म या ब्रह्म) एक ही है, अतएव पिताके एक होनेसे जातिभेद बन नहीं सकता // 3 // जिस प्रकार सभी उदुम्बर वृक्षोंके ऊपर, नीचे और मध्यभाग में लगे हुए फल, रूप और स्पर्श आदिकी अपेक्षा समान होते हैं उसी प्रकार एकसे उत्पन्न होनेके कारण उनकी जाति भी एक ही जाननी चाहिए // 4 // लोकमें यद्यपि जो कौशिक, ' काश्यप, गौतम, कौडिन्य, माण्डव्य, वशिष्ठ, आत्रेय, कौत्स, आङ्गिरस, गाय, मोद्गल्य, कात्यायन और भार्गव आदि अनेक गोत्र, नाना. जातियाँ तथा माता, बहू, साला, पुत्र और स्त्री आदि नाना सम्बन्ध, इनके अलग अलग वैवाहिक कर्म और नाना वर्ण प्रसिद्ध हैं, परन्तु उनके वे सब वास्तवमें एक ही हैं // 5-6 // ब्राह्मण कुछ चन्द्रमाकी किरणोंके समान शुभ्र वर्णवाले नहीं होते, क्षत्रिय कुछ किंशुकके पुष्पके समान गौर वर्णवाले नहीं होते, वैश्य कुछ हरिताल के समान रंगवाले नहीं होते और शूद्र कुछ कोयलेके समान कृष्ण वर्णवाले नहीं होते // 7 // चलना-फिरना, शरीरका रंग, केश, सुख-दुख, रक्त, त्वचा; मांस, मेदा, हड्डी और रस इन सब बातोंमें वे समान होते हैं, इसलिए चार भेद कैसे हो सकते हैं / / 8 // कृतयुगमें तो वर्णभेद था ही