________________ क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 321 विवक्षित हैं, इसलिए कुछ भी विरुद्ध बात नहीं है, क्योंकि जो इस प्रकारसे उत्पन्न हुए बालक हैं वे दीक्षाके योग्य हैं इस बातका निषेध नहीं है। -जयधवला प्रेस कापी पृ० 6395 धर्म-कर्मबहिर्भूता इत्यमी म्लेच्छका मताः / अन्यथान्यैः समाचारैः आर्यावर्तेन ते समाः // 31-42 // ये लोग धर्मक्रियाओंसे रहित हैं, इसलिए म्लेच्छ माने गये हैं। धर्मक्रियाओंके सिवा अन्य आचरणोंसे वे आर्यावर्तमें उत्पन्न होनेवाले लोगोंके समान हैं // 31-142 / / -महापुराण तत्तो पडिवज्जगया अज्ज-मिलेच्छे मिलेच्छ-अज्जे य / कमसो अवरं अवरं वरं वरं वरं होदि संखं वा // 165 // प्रतिपातगत स्थानोंसे आगे असंख्यात लोक असंख्यात लोकप्रमाण स्थानोंका अन्तर देकर क्रमसे अार्योंके जघन्य, म्लेच्छोंके जघन्य, म्लेच्छोंके उत्कृष्ट और आर्योंके उत्कृष्ट संयमस्थान होते है // 15 // -लब्धिधार क्षपणासार मनोरपत्यानि मनुष्याः / ते द्विविधाः-कर्मभूमिजा भोगभूमिजाश्चेति / तत्र कर्मभूमिजाश्च द्विविधाः-आर्या म्लेच्छाश्चेति / आर्याः पुण्यक्षेत्रवर्तिनः। म्लेच्छाः पापक्षेत्रवर्तिनः। भोगभूमिजाश्चार्यनामधेयधराः जघन्यमध्यमोत्तमक्षेत्रवर्तिनः एकद्वित्रिपल्योपमायुषः / / ___ मनुके अपत्य मनुष्य कहलाते हैं। वे दो प्रकारके हैं-कर्मभूमिज और भोगभूमिज / उनमें से कर्मभूमिज मनुष्य दो प्रकार के हैं-आर्य और म्लेच्छ / पुण्य क्षेत्रमें रहनेवाले आर्य कहलाते हैं और पाप क्षेत्रमें रहनेवाले म्लेच्छ कहलाते हैं। आर्य नामको धारण करनेवाले भोगभूमिज मनुष्य जघन्य, मध्यम और उत्तम भोगभूमिमें रहते हैं जिनकी आयु क्रमसे एक, दो और तीन पल्पप्रमाण होती है। -नियमसार, गा० 16, अमृतचन्द्राचार्यकृत टीका