________________ 332 वर्ण, जाति और धर्म नीचगोत्रका जघन्य काल एक समय है, क्योंकि उच्चगोत्रसे नोचगोत्र ' को प्राप्त होकर और वहाँ एक समय रहकर दूसरे समयमें उच्चगोत्रके उदयमें आ जानेपर एक समय काल उपलब्ध होता है। तथा उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। उच्चगोत्रका जघन्य काल एक समय है, क्योंकि उत्तर शरीरकी विक्रिया कर एक समय रहकर मरे हुए जीवके उच्चगोत्रका एक समय काल उपलब्ध होता है। इसी प्रकार नीचगोत्रका भी एक समय काल उपलब्ध होता है। उच्चगोत्रका उत्कृष्ट काल सौ सागर पृथक्त्व प्रमाण है। . --उपक्रम अनुयोगद्वार; धवला टीका, पु० 15 पृ. 67 गोत्राख्यं जन्तुजातस्य कर्म दत्ते स्वकं फलम् / शस्ताशस्तेषु गोत्रेषु जन्म निष्पाद्य सर्वथा // 34-24 // गोत्रकर्म जीवोंको प्रशस्त और अप्रशस्त गोत्रोंमें उत्पन्न करा कर सर्व प्रकारसे अपना फल देता है // 34-24 // -ज्ञानार्णव अप्पा गुरु ण वि सिस्सु ण वि सामिउ ण वि भिक्खु / सूरुउ कायरु होइ ण वि ण उत्तमु ण वि णिच्चु // 8 // आत्मा न तो गुरु है, न शिष्य है, न स्वामी है, न भृत्य है, न सूर है, न कायर है, न उत्तम है और न नीच है // 86 // -परमात्मप्रकाश संताणकमेणागयजीवायरणम्स गोदमिदि सणा। उच्चं णीचं चरणं उच्चं णीचं हवे गोदं // 13 // खाइयसम्मो देसो गर एव जदो तहिं ण तिरियाऊ / उज्जोवं तिरियगदी तेसिं अयदम्हि वोच्छेदो // 226 // जीवके सन्तान क्रमसे आये हुए आचरणकी गोत्र संज्ञा है। उच्चआचरण हो तो उच्चगोत्र और नीच आचारण हो तो नीच गोत्र होता हे // 13 //