________________ कुल-मीमांसा 341 कुल क्रमसे आये हुए क्रूरता आदि दोषोंसे रहित होने के कारण कुल विशिष्ट हैं // 20 // -प्रवचनसार टीका इच्वाकुनाथभोजोमवंशास्तीर्थकृता कृताः / आयेन कुर्वता राज्यं चत्वारि प्रथिता भुवि // 18-65 // अर्ककीर्तिरभूत्पुत्रो भरतस्य रथाङ्गिनः। सोमो बाहुबलेस्ताभ्यां वंशौ सोमार्कसंज्ञिकौ // 18-66 // राज्य करते हुए प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेवने लोकमें प्रसिद्ध इक्ष्वाकुवंश, नाथवंश, भोजवंश और उग्रवंश इन चार वंशोंका निर्माण किया // 18-65 // भरतचक्रवर्तीका अर्ककीर्ति नामका पुत्र हुआ और बाहुबलीका सोम नामका पुत्र हुआ / इन दोनोंने चन्द्रवंश और सूर्यवंश चलाये // 18-66 / / -धर्मपरीक्षा किं कुर्वन् पश्यन् मनसालोकयन् / कम् ? स्वम् / क ? उपरिप्रक्रमवशास्सधर्मणम् / कया जात्या च कुलेन च / कथम् मृषा तद्वयेनापि संवृतितया, जाति-कुलयोः परमार्थतः शुद्धेनिश्चेतुमशक्यत्वात् / तदुक्तम् अनादाविह संसारे दुर्वारे मकरध्वजे / कुले च कामिनीमूले का जातिपरिकल्पना // जाति और कुलकी शुद्धिका निश्चय करना अशक्य है। साथ ही ये दोनों काल्पनिक हैं, इसलिए जो इनका पालम्बन लेकर स्वयंको अन्य साधर्मी पुरुषोंसे बड़ा मानता है वह ... | कहा भी है . इस अनादि संसारमें कामदेव दुर्निवार है और कुल स्त्रीके अधीन है, इसलिए इसमें जातिके माननेका कोई अर्थ नहीं है। _ -अनगारधर्मामृत अ० 3 श्लो० 88 टीका . जाता जैनकुले पुरा जिनवृषाभ्यासानुभावाद्गुणैः / ये ऽयत्नोपनतैः स्फुरन्ति सुकृतामग्रेसरा केऽपि ते /