________________ - वर्ण, जाति और धर्म नेच्वाकुकुलाद्युत्पत्तौ, काल्पनिकानां तेषां परमार्थतोऽसत्त्वात् / इक्ष्वाकुकुल आदिकी उत्पत्तिमें भी उच्चगोत्रका व्यापार नहीं होता, क्योंकि वे काल्पनिक हैं, परमार्यसे वे हैं ही नहीं। -प्रकृति अनुयोगद्वार सूत्र 136 पु० 13 धवला तस्येष्टमूरुलिङ्ग च सुधौतसितशाटकम् / आहेतानां कुलं पूतं विशालं चेति सूचने // 38-11 // वर्णलाभोऽयमुद्दिष्टः कुलचर्याऽधुनोच्यते / भार्यषट्कर्मवृत्तिः स्यात् कुलचर्यास्य पुष्कला // 31-72 // पितुरन्वयशुद्धिर्या तस्कुलं परिभाष्यते // 36-85 कुलावधिः कुलाचाररक्षणं स्यात् द्विजन्मनः / . तस्मिन्नसत्यसौ नष्टक्रियोऽन्यकुलतां भजेत् // 40-181 // अत्यन्त धुली हुई सफेद धोती उसकी जाँघका चिह्न है। वह धोती सूचित करती है कि अरिहन्त कुल पवित्र और विशाल है // 38, 111 // ___ वर्णलाभ क्रिया कही। अब कुलचर्या क्रिया कहते हैं-आर्यपुरुषों द्वारा करने योग्य छह कमोंसे अपनी आजीविका करना इसकी कुलचर्या क्रिया है / / 36, 72 // पिताकी वंशशुद्धिको कुल कहते हैं // 36-85 // अपने कुलके आचारकी रक्षा करना द्विजोकी कुलावधि क्रिया कहलाती है। इसकी रक्षा न होने पर उसकी समस्त क्रियाएँ नष्ट हो जाती हैं और वह अन्य कुलको प्राप्त हो जाता है // 40-81 // -महापुराण कुलं गुरुसन्ततिः। गुरुकी सन्ततिको कुल कहते हैं। -मूलाचार अ० 5 गा०८६ 44 टीका कुलक्रमागतक्रौर्यादिदोषवर्जितत्वाच्च कुलविशिष्टम् // 20 //