________________ 338 वर्ण, जाति और धर्म गण्याह कुरुराजानमन्ववाये महोदये। . शान्तिकुन्थ्वरनामानो यत्र तीर्थकरास्त्रयः // 45-4 // भार्गवाचार्यवंशोऽपि शृणु श्रेणिक ! वर्ण्यते / द्रोणाचार्यस्य विख्याता शिष्याचार्यपरम्परा // 45-44 // गङ्गा और सिन्धु नदीके मध्य दक्षिण भारतवर्षमें क्रमसे चौदह कुलकर उत्पन्न हुए // 7-124 // ___ भरतके पुत्र श्रादित्यवंशमें उत्पन्न हुए। ये सब विस्तृत कीर्तिको प्राप्त कर और अपने अपने पुत्रपर राज्यका भार सोंपकर तप करके मोक्षको प्राप्त हुए // 13-12 // बाहुबलिका सोमयश पुत्र हुआ। उसने सोमवंश चलाया। उसका पुत्र महाबल हुआ // 13-16 // ___ पहले प्रधान इक्ष्वाकुवंश उत्पन्न हुआ.। पुनः उससे आदित्यवंश निकला और उसीसे सोमवंश तथा अन्य कुरुवंश और उग्रवंश आदि निकले / अनन्तर श्री ऋषभदेवके निमित्तसे हो ऋषिगणोंका श्रीवंश चला। इस प्रकार मैंने (गौतमगणधरने) तुम्हें (श्रेणिक राजाके लिए) राजाओं और विद्याधरोंके वंश कहे // 13-33 // यह हरि राजा हरिवंश कुलको उत्पत्तिमें तथा उत्तम यश फैलानेमें प्रथम कारण हुआ। जगतमें जिसके सुनामको लेकर हरिवंश यह श्रुति फैली // 15-58 // उस हरिवंश रूपी उदयाचलपर यदु उदित हुए। उस यदु राजारूपी सूर्यने पृथिवीपर यादववंश फैलाया // 18-6 // ____ गणीने कहा ये पाण्डव विपुल वैभवशाली उस कुरुवंशमें हुए हैं जिसमें शान्ति, कुन्थु और अर ये तीन तीर्थङ्कर उत्पन्न हुए // 45-4 // हे श्रेणिक ! मैं भार्गव आचार्यके वंशका कथन करता हूँ, सुनो। जो द्रोणाचार्य शिष्य आचार्योंकी परम्परा प्रसिद्ध है उसे भार्गववंश कहते हैं / / 45-44 // -हरिवंशपुराण