________________ . क्षेत्रकी दृष्टि से दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 316 भागोंमें होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए सूत्रमें 'कम्मभूमियस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स वा' यह कहा है। --वेदना कालविधान सूत्र 12 धवला टीका तिब्वमंददाए सव्वमंदाणुभागं मिच्छत्तं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्टाणं / तस्सेवुक्कस्सयं संजमहामणतगुणं। असंजदसम्मत्तं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं / तस्सेवुक्कस्सयं संजमाणमणंतगुणं / संजमासंजमं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं / तस्सेव उक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं / कम्मभूमियस्स पडिबजमाणयस्स जहप्रणयं संजमाणमणंतगुणं / अकम्मभूमियस्स पडिवजमाणस्स जहण्णयं संजमठाणमणंतगुणं। तस्सेवुक्कस्सयं प्रडिवजमाणयस्स संजमठाणमणंतगुणं / कम्मभूमियस्स पडिवजमाणयस्स उक्कस्सयं संजमाणमणंतगुणं / तीव्र मन्दताकी अपेक्षा विचार करनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले संयतके जघन्य संयंमस्थान सबसे मन्द अनुभागवाला होता है। उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे असंयत सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले संयतके जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले संयमके जघन्य संवमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा होता है / उससे संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुप्यके जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले अकर्मभूमिज मनुष्यके जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले उसी अकर्मभूमिज मनुष्यके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा होता है। --जयधवला