Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 319
________________ क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 317 पडिवज्जमाणस्स उक्कस्सयं संजमठाणमणंतगुणं, असंखेज्जलोगमेत्तछठागाणि उवरि गंतृणुप्पत्तीदो। ___ संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि असंख्यात लोकप्रमाण छहस्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले अकर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि असंख्यात लोकप्रमाण स्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले उसी मनुष्यका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि असंख्यात लोमप्रमाण षट्स्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। उससे संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि असंख्यात लोकप्रमाण घटस्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है / -जीवस्थान चूलिका धवला पृ० 287 पंचिंदियपजत्तमिच्छाइटिणो कम्मभूमा अकम्मभूमा चेदि दुविहा / तत्थ अकम्मभूमा उक्कस्सद्विदि ण बंधति, पण्णरसकम्मभूमीसु उप्पण्णा चेव उक्कस्सद्विदि बंधति त्ति जाणावण? कम्मभूमियस्स वा त्ति भणिदं / भोगभूमीसु उप्पण्णाणं व देव-णेरइयाणं सयंपहणगेंदपव्वदसबाहिरभागप्पहुडि जाव सयंभूरमणसमुद्दो त्ति एत्य कम्मभूमिपडिभागम्मि उप्पण्णतिरिक्खाणं च उक्कस्सटिदिबंधपडिसेहे पत्ते तणिराकरणटुं अकम्मभूमिस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स वा त्ति भणिदं / अकम्मभूमिस्स वा देव-णेरड्या घेतव्वा / कम्मभूमिपडिभागस्स वा त्ति उत्ते सयंपहणगिंदपव्वदस्स बाहिरे भागे समुप्पाणं गहणं / संखेज्जवासाउअस्स वा त्ति उत्ते अड्डाइजदीवसमुद्रुप्पण्णम्स. कम्मभूमिपडिभागुप्षण्णस्स च गहणं / असंखेज्जवासा अस्स वा त्ति उत्ते देव-णेरइयाणं गहणं, ण समयाहियपुव्वकोटिप्पहडिउवरिमआउअतिरिक्ख-मणुस्साणं गहणं, पुवसुत्तेण तेसि विहिदपडिसेहादो।

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