________________ वर्ण, जाति और धर्म पुनरयं विशेषः-असंयततैरश्च्यां प्रथमोपशम-वेदकसम्यक्त्वद्वयं, असंयतमानुष्यांप्रथमोपशमवेदकक्षायिकसम्यक्त्वत्रयं च सम्भवति / तथापि एको भुज्यमानपर्याप्तालाप एव / योनिमतीनां पञ्चगुणस्थानादुपरि गमनासम्भवात् द्वितीयोपशमसम्यक्त्वं नास्ति / -जी० प्र० टीका विशेष इतना जो योनिमत् मनुष्यकै असंयतविर्षे एक पर्याप्त आलाप हो है। कारण पूर्व कह्या ही है। बहुरि इतना विशेष है जो असंयत तिर्यश्चिणीकै प्रथमोपशम वेदक ए दो सम्यक्त्व हैं अर मनुष्यिणीकै प्रथमोपशम वेदक क्षायिक ए तीन सम्यक्स्व संभवै हैं तथापि जहाँ सम्यक्त्व हो है तहाँ पर्याप्त आलाप ही है / सम्यक्त्वसहित मरै सो स्त्रीवेदविषै न उपजै है बहुरि द्रव्य अपेक्षा योनिमती पञ्चम गुणस्थान ते ऊपरि गमन करैः नाहीं तातै तिनकै द्वितीयोपशम सम्यक्त्व नाहीं है। -गो० जी०, गा० 703, स० च० टीका क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा दसणमोहणीयं कम्म खवेदुमाढवेतो कम्हि अढवेदि ? अड्डाइजेसु दीव-समुद्देसु पण्णारसकम्मभूमीसु जम्हि जिणा केवली तित्थयरा तम्हि आढवेदि। ___दर्शनमोहनीय कर्मकी क्षपणाका आरम्भ करनेवाला कहाँपर उसकी क्षपणाका प्रारम्भ करता है ? ढाई द्वीप और दो समुद्रोंमें स्थित पन्द्रह कर्मभूमियोंमें जहाँ जिन, केवली और तीर्थङ्कर विद्यमान हों वहाँ उसकी क्षपणाका प्रारम्भ करता है // 11 // -जीवस्थान सम्यक्त्वोत्पत्तिचूलिका अण्णदरस्स पंचिंदियस्स सण्णिस्स मिच्छाइटिस्स सव्वाहि पजतीहि पजत्तयदस्स कम्मभूमियस्स अकम्मभूमियस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स