________________ .. नोआगमभावमनुष्योंमे धर्माधर्ममीमांसा 306 न्द्रियरूपप्रतिपक्षस्य मनुष्यगतावसम्भवात् सर्वमनुष्याणां पन्चेन्द्रियत्वस्यैव सम्भवात् / म०प्र० टी०] * तिर्यञ्च पाँचप्रकार-सामान्य तिर्यञ्च 1 पञ्चेन्द्री तिर्यञ्चर पर्याप्त तिर्यञ्च 3 योनिमती तिर्यञ्च 4 अपर्याप्त तिर्यञ्च 5 / तहाँ सर्व ही तिर्यञ्च भेदनिका समुदायरूप सो तो सामान्य तिर्यञ्च है। बहुरि जो एकेंद्रियादिक विना केवल पञ्चेन्द्री तिर्यञ्च सो पञ्चेन्द्री तिर्यञ्च है। बहुरि जो अपर्याप्त विना केवल पर्याप्ततिर्यञ्च सो पर्याप्त तिर्यञ्च है। बहुरि जो स्त्रीबेदरूप तिर्यश्चणी सो योनमती तिर्यञ्च है बहुरि जो लब्धि अपर्याप्त तिर्यञ्च है सो पर्यात तिर्यञ्च है / ऐसें तिर्यञ्च पञ्चप्रकार हैं। बहुरि तैसें ही मनुष्य हैं। इतना विशेष-जो पञ्चेन्द्रिय भेदकरि होन है तातें सामान्यादिरूपकरि च्यारि प्रकार है। जाते मनुष्य सर्व ही पञ्चेन्द्री है तातै जुदा भेद तिर्यञ्चवत् न होइ तातें सामान्य मनुष्य 1 पर्याप्त मनुष्य 2 योनिमती मनुष्य 3 अपर्याप्त मनुष्य 4 ए च्यारि भेद मनुष्यके जानने। तहाँ सर्व मनुष्य भेदनिका समुदाय रूप सो सामान्य मनुष्य है / केवल पर्याप्त मनुष्य सो पर्याप्त मनुष्य है / स्त्रीवेदरूप मनुष्यिणी सो योनिमती मनुष्य, लब्धि अपर्याप्तक मनुष्य सो अपर्याप्त मनुष्य है / . -गो० जी०, गाथा 150, सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका टीका पर्याप्तमनुष्यराशेः त्रिचतुर्भागो मानुषीणां द्रव्यत्रीणां परिमाणं भवति / जी० प्र० टो०] पर्याप्तमनुष्याणां त्रिचतुर्भागमात्रं मानुषीणां द्रव्यमनुष्यस्त्रीणां परिमाणं भवति / [म० प्र० टी०] - पर्याप्त मनुष्यनिका प्रमाण कहया ताका च्यारि भाग कीजिए तामैं तीन भागप्रमाण मनुषिणी द्रव्यस्त्री जाननी। -गो० जी०, गा० 156, स० च० टीका नरकादिगतिनामोदयजनिता नारकादिपर्यायाः गतयः / नरकादि गतिनामा नामकर्मके उदयतें उत्पन्न भये पर्याय ते गति कहिए। -गो० जी० गा० 156, स० च० टी०