________________ - नोआगमभावमनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 305 शंका-वस्त्रसहित होते हुए भी उनके भावसंयमके होनेमें कोई विरोव नहीं है ? समाधान-उनके भावसंयम नहीं होता, अन्यथा उनके भाव असंयमका अविनाभावी वस्त्रादिकका ग्रहण करना नहीं बनता / शंका-तो फिर उनमें चौदह गुणस्थान कैसे बन सकते हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि भावस्त्री विशिष्ट अर्थात् स्त्रीवेद युक्त मनुष्यगतिमें उनका सद्भाव होने में विरोध नहीं आता। शंका-भाववेद बादरकषाय जहाँ तक है वहीं तक होता है आगे नहीं होता, इसलिए भाववेदमें चौदह गुणस्थानोंका सत्त्व नहीं हो सकता ? ___ समाधान-नहीं, क्योंकि यहाँ अर्थात् गति मार्गणामें वेदकी प्रधानता नहीं है / परन्तु यहाँ पर गति प्रधान है और वह पहले नष्ट नहीं होती। शंका–वेदविशेषणसे युक्त गतिमें चौदह गुणस्थान सम्भव नहीं हैं ? .. समाधान नहीं, क्योंकि विशेषणके नष्ट हो जाने पर भी (जिस गुणके कारण मनुष्यिनी शब्दका व्यवहार होता है उस गुणके नष्ट हो जाने पर भी) उपचारसे उस संज्ञाको धारण करनेवाली मनुष्यगतिमें चौदह गुणस्थानोंके होनेमें कोई विरोध नहीं आता। . -जीवस्थान सत्प्ररूपणा सू० 63 धवला टीका कुदो ? संजमं परिहारसुद्धिसंजमं संजमासंजमं च गंतूण जहण्णकालमच्छिय अण्णगुणं गदेसु तदुवलंभादो / ___ कोई जीव संयम, परिहारशुद्धिसंयम और संयमासंयमको प्राप्त होकर और जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त तक रहकर यदि अन्य गुणस्थानको प्राप्त हो जाता है तो उक्त गुणोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है / __ -क्षुल्लकबन्धकाल सूत्र 148 धवला टीका .' कुदो ? मणुस्सस्स गब्भादिअवस्सेहि संजमं पडिजिय देसूणपुव्वकोडिं संजममणुपालिय कालं काऊण देवेसुप्पण्णस्स देसूणपुव्वकोडिमेत्त