________________ . प्रकृतमें उपयोगी पौराणिक कथाएँ प्र 265 राजपुरुषोंको मना कर दिया। किन्तु जब उसे यह मालूम हुआ कि आज जिसका वध किया जाना है उसके पास विपुल धन है, उसने सङ्केतसे अपने पतिको बतला दिया। लाचार होकर यमपाशको राजपुरुषोंके साथ जाना पड़ा। किन्तु उस दिन वह किसीको शूली पर चढ़ाने के लिए राजी नहीं हुआ। इसका परिणाम जो होना था वही हुआ / अर्थातू राजाने चोरके साथ इस चाण्डालको भी मगर मच्छोंसे भरे हुए तालाबमें फिकवा दिया / उसने इन दोनोंको फिकवा तो दिया। किन्तु उसके इस कृत्यसे भूतादि देवगण बहुत कुपित हुए। वे राजाको मारने के लिए उद्यत हो गये। अन्तमें जब यमपाशने मना किया और राजा अपनी पुत्रीके साथ आधा राज्य उसे देनेके लिए राजी हुआ तब कहीं भूतोंने राजाका पिण्ड छोड़ा। इस प्रकार राजाके द्वारा पूजित होकर वह चाण्डाल आधे राज्यको पाकर और राज कन्याके साथ विवाह कर उनका भोग करता हुआ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। . अपनी माताके पितासे उत्पन्न स्वामी कार्तिकेयका . . मुनिधर्म स्वीकार कार्तिक नामके नगरमें अग्नि नामक राजा रहता था। उसकी रानीका नाम वीरवती था। उन दोनोंके योगसे छह कन्याएं उत्पन्न हुई। अन्तिम कन्याका नाम कीर्ति था। कीर्तिके यौवनसम्पन्न होने पर पिता उस मर मोहित हो गया और उसे पत्नी बना कर रख लिया। कुछ दिन बाद इन्हें पुत्रकी प्राप्ति हुई। उसका नाम कार्तिकेय रखा गया / बड़े होने पर जब कार्तिकेयको यह ज्ञात हुआ कि हमारी माताका पिता ही हमारा पिता है तब वह संसारसे विरक्त हो मुनि हो गया और उत्तम प्रकारसे तप करके स्वर्गका अधिकारी बना। * . 1. बृहत्कथाकोश कथा 74 पृ० 178 से। 2. बृहत्कथाकोश कथा 136 पृ० 324 //