________________ प्रकृतमें उपयोगी पौराणिक कथाएँ 213 एक ग्वालेके लड़केको रख लिया था। एक बार उसने कलनन्द नामके सरोवरमेंसे एक कमल का फूल तोड़ लिया। यह देख कर उस सरोवरकी रक्षिका देवता बड़ी नाराज हुई। उसने कहा जो लोकमें सर्वश्रेष्ठ हो उसकी इस कमल द्वारा पूजा कर, अन्यथा तुझे मैं योग्य शिक्षा दूँगी / बालक कमल लेकर अपने स्वामीके पास गया। स्वामीने सब वृत्तान्त सुन कर उसे राजाके पास भेज दिया। साथमें स्वयं भी गया / राजा ठीक स्थिति समझ कर सबके साथ उस शूद्र बालकको मुनिके पास और अन्तमें मुनिकी सलाहसे जिनेन्द्र भगवानके पास ले गया। वहाँ पहुँच कर उस बालकने बड़ी भक्तिपूर्वक उस कमलके फूलसे भगवान्के चरणोंको पूजा की और पूजा करनेके बाद जिनेन्द्रदेवको नमस्कार कर वह अपने मालिक धनमित्र सेठके साथ घर चला गया। . श्रावकधर्मको स्वीकार करनेवाला बकरा- नासिक देशकी पश्चिम दिशामें कुंकुम नामका एक देश था। उसमें पलास नामका एक ग्राम था। उसके अधिपतिका नाम सुदास था। उसका वलि-पूजामें बड़ा विश्वास था। मरते समय वह अपने वसुदास नामके पुत्रको कह गया था कि मेरे मरनेके बाद तू इस पूजाको चालू रखना / पिताकी आज्ञानुसार पुत्र भी देवीके सामने बकरा आदिका वध कर उसकी :: पूजा करने लगा / अशुभ कर्मके उदयसे कुछ काल बाद वसुदासका पिता मर कर उसी ग्राममें बकरा हुआ। बकराके पुष्ट होने पर वसुदासने उसे देवीको भेट चढ़ा दिया / इस प्रकार वह सात बार बकरा हुआ और प्रत्येक बार वमुदास उसे देवीको भेट चढ़ाता गया। आठवीं बार वसुदास जब उसे देवीको भेट चढ़ानेके लिए ले जा रहा था तब मार्गमें उसकी एक मुनिसे भेट हो गई / अन्तमें योग्य प्रसंग उपस्थित होने पर मुनिने वसुदास को उपदेश दिया। उपदेश सुन कर और यह जान कर कि यह बकरा 1. वृहत्कथाकोश कथा 56 पृ०८०-८१।