________________ जातिमीमांसा तिरेपन क्रियाओं के प्रसङ्गसे स्वीकार किया है। किन्तु उसका वह तात्पर्य है जिसे वे जयधवलामें उपशमसम्यक्त्व आदिकी उत्पत्तिके कारणोंका व्याख्यान करते हुए स्वीकार करते हैं / अतः जयधवलाके उन्हीके कथनके अनुसार जैनधर्ममें लौकिक कुलशुद्धिको स्थान नहीं है यह मानना ही उत्तम मार्ग है। " जातिमीमांसा मनुस्मृतिमें जातिव्यवस्थाके नियम___ भारतीय लौकिक जीवन में कुल और गोत्रके समान जातीय व्यवस्थाको भी बड़ा महत्त्व मिला हुआ है। इसका प्रभाव सभी क्षेत्रोंमें दृष्टिगोचर होता है / अधिकतर मनुष्योंकी बुद्धिमें ही यह बात नहीं थाती कि जातिका आश्रय लिए बिना भी कोई कार्य हो सकता है। आत्मशुद्धिमें प्रयोजक ध्यान, तप, संयम और भगवदुपासनारूप धर्मकार्यसे लेकर विवाह आदि प्रत्येक सामाजिक कार्यमें इसका विचार किया जाना वे उपयोगी मानते हैं। वैदिक रामायणमें मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र के द्वारा शम्बूकका वध इसलिए कराया गया,क्योंकि शूद्रजातिका होनेके कारण उसे तपश्चर्या करनेका अधिकार नहीं था। इसकी उत्पत्तिका मूल कारण जन्मना वर्णव्यवस्था है, इसलिए मूलमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार जातियाँ मानकर इनके अवान्तर भेद अनेक मान लिए गये हैं। मनुस्मृतिमें उत्तरोत्तर जातियाँ कैसे बनती गई इसका संक्षिप्त इतिहास सुरक्षित है / वहाँ बतलाया है कि जोवत्पतिवाली अन्य स्त्रीके संयोगसे उत्पन्न हुई सन्तानको कुण्ड संज्ञा होती है, मृत पतिवाली अन्य स्त्रीके संयोगसे उत्पन्न हुई सन्तानकी गोलक संज्ञा होती है, 1. भ० 3 श्लो० 174 / /