________________ आहारप्रहण मीमांसा 245 करना, साधुका मूर्छा आदि कारणसे स्वयं गिर पड़ना, साधुका किसी कारणवश स्वयं बैठ जाना, कुत्ता आदिके द्वारा साधुको काट लेना, साधुके द्वारा हाथसे भूमिको छू लेना, मुँह आदिसे कफ आदिका निकल पड़ना, साधुके पेटसे कृमि आदिका निकल पड़ना, साधु द्वारा विना दी हुई वस्तुको ग्रहण कर लेना, तलवार आदिसे स्वयं अपने ऊपर या दूसरेके ऊपर प्रहारका किया जाना, ग्राममें अग्नि लग जाना, पैरसे किसी वस्तुका उठाना तथा हायसे किसी वस्तुका ग्रहण करना / ये बत्तीस अन्तराय हैं। इनमेंसे किसी भी कारणसे आहार लेनेमें बाधा उपस्थित हो जाने पर साधु आहारका त्याग कर देता है। इसी प्रकार भयका कारण उपस्थित होने पर तथा लोकजुगुप्साके होने पर साधु संयम और निवेदकी सिद्धि के लिए आहारका त्याग कर देता है / कुछ अन्तरायोका स्पष्टीकरण यों तो सब अन्तरायोंका अर्थ स्पष्ट है, इसलिए उन सबके विषयमें यहाँ पर कुछ कहना आवश्यक प्रतीत नहीं होता। किन्तु काक और अभोज्यगृह प्रवेश ये दो अन्यराय ऐसे हैं जिनके विषयमें कुछ भी न लिखना भ्रमको पैदा करनेवाला है, इसलिए यहाँ क्रमसे उनका विचार किया जाता है। काक शब्दका अर्थ स्पष्ट है। इसके द्वारा उन सब पक्षियोंका ग्रहण किया गया है जो कौएके समान अशुचि पदार्थ मांस आदिका भक्षण करते हैं और विष्टा आदि पर जा बैठते हैं। मालूम पड़ता है कि इस द्वारा यह बतलाया गया है कि यदि कोई कौआ आदि पक्षी .. साधुके मनलित शरीरको देख कर या पिण्ड (भोजन ) ग्रहण करनेकी इच्छासे साधुके शरीरपर आ बैठे या भोजन देख कर उसके लिए झपटे तो साधुको अन्तराय मान कर उस दिन अहार-पानीका त्याग कर देना चाहिए। . दूसरा अन्तराय अभोज्यगृहप्रवेश है। जिस घरका साधुको भोजन नहीं लेना चाहिए उस घरमें प्रवेश हो जाने पर वह अन्तराय मानकर उस