________________ प्रकृतमें उपयोगी पौराणिक कथाएँ 289 इन्द्रकी गगनवल्लभा नामकी देवी हुई। यह कथा आराधनाकथाकोश में भी आई है। परस्त्रीसेवी सुमुख राजाका उसके साथ मुनिदान___ वत्सदेशकी कौशाम्बी नगरीमें सुमुख नामका एक राजा राज्य करता था। एक बार वसन्तोत्सवके समय उसकी वीरक श्रेष्ठीकी पत्नी वनमालाके ऊपर दृष्टि पड़ी। वनमाला रूप-यौवनसम्पन्न थी, इसलिए उसे देखकर राजा उस पर आसक्त हो गया / फलस्वरूप राजाने एक दूती द्वारा उसका हरण कराकर उसे अपनी पट्टरानी बनाया / कुछ काल बाद राजमहलमें परम तपस्वी वरधर्म नामके मुनि आहारके लिए आये। यह देखकर वनमाला सहित राजाने मुनिको आहार दिया / इसके फलस्वरूप कालान्तरमें उन दोनोंने मरकर विद्याधर कुलमें जन्म लिया। चारुदत्तसे विवाही गई वेश्यापुत्रीका श्रावकधर्म स्वीकार__चम्पानगरीमें भानुदत्त श्रेष्ठी और उसकी पत्नी सुभद्रा रहते थे। उनके पुत्रका नाम चारुदत्त था / चारुदत्तका विवाह होने पर वह स्त्री सम्पर्कसे विमुख रहने लगा। यह देखकर माताकी सलाहसे उसके चाचाने उसे वेश्याव्यसनको लत डाल दी। चारुदत्त वेश्यापुत्री वसन्तसेनाके साथ वेश्याके घर ही रहने लगा। कुछ * काल बाद चारुदत्तका सब धन समाप्त हो जाने पर वेश्याने उसे बुरी तरहसे घरसे निकाल दिया / चारुदत्त घर आया और व्यापार व्यवसायके लिए बाहर चला गया। अन्तमें घर लौटने पर उसने अणुव्रतसम्पन्न वेश्यापुत्री वसन्तसेनाके साथ विवाह कर उसे पत्नीरूपमें स्वीकार कर लिया। जीवनके अन्तमें चारुदत्त मुनिधर्म स्वीकार कर सर्वार्थसिद्धि गया और वेश्याने सद्गति पाई / ..1 हरिवंशपुराण सर्ग 60 श्लो०६२-३८ / 2 बृहत्कथाकोश कथा 72 पृ० 166 से। 3 हरिवंशपुराण सग 14-15 / 4 हरिवंशपुराण स ग 21 /